ग़ज़ल
पढ़ाई कर के भी मजबूरियों में सिसकते बच्चे।
मेरे इस देश अन्दर काम को भी तरसते बच्चे।
विदेशी मां की रहमत से वे दौलत पा तो लेते हैं,
अधूरे प्यार एंव सत्कार से हैं बिलखते बच्चे।
सुबह अखबार में लड़की का नंगा देख कर रवाका,
इधर कुछ वहकते बूढ़े, उधर कुछ मचलते बच्चे।
तरक्की कर तो ली है ज्ञान रिशवत और नेता ने,
मगर रोटी की खातिर झुगियों में बिलखते बच्चे।
सड़क पर तोड़ती पत्थर का तन भी हो गया पत्थर,
किसी मजदूर मां के दूध को भी तरसते बच्चे।
मेरी सरकार देवे भीख परन्तु काम ना देवे,
गलत प्रबंध के कानून से है बिगड़ते बच्चे।
भ्रष्टाचार वाला तेल रहबर ने फिलाया है,
अनैतिक नियम की फिसलन से गिर-गिर संभलते बच्चे।
कोई क्या ठीक कहता है कोई क्या गलत कहता है,
मगर हालात एैसे हैं कि सब कुछ समझते बच्चे।
मेरा बचपन हकीकत बन के मेरे सामने आए,
कभी जब देखता हूं मैं किसी के बुसकते बच्चे।
शहर मे जब भी मौसम आ गया ’बालम‘ टयूशन का
ते फिर टीचर के कहने पर कक्षा से सिसकते बच्चे।
बलविन्द्र बालम गुरदासपुर
ओंकार नगर गुरदासपुर (पंजाब)
मोबाईल 9815625407
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