दोधक छंद "आत्म मंथन"
दोधक छंद
मन्थन रोज करो सब भाई।
दोष दिखे सब ऊपर आई।
जो मन माहिं भरा विष भारी।
आत्मिक मन्थन देत उघारी।।
खोट विकार मिले यदि कोई।
जान हलाहल है विष सोई।
शुद्ध विवेचन हो तब ता का।
सोच निवारण हो फिर वा का।।
भीतर झाँक जरा अपने में।
क्यों रहते जग को लखने में।।
ये मन घोर विकार भरा है।
किंतु नहीं परवाह जरा है।।
मत्सर, द्वेष रखो न किसी से।
निर्मल भाव रखो सब ही से।
दोष बचे उर माहिं न काऊ।
सात्विक होवत गात, सुभाऊ।।
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दोधक छंद विधान:-
"भाभभुगाग" इकादश वर्णा।
देवत 'दोधक' छंद सुपर्णा।।
"भाभभुगाग" = भगण भगण भगण गुरु गुरु
211 211 211 22 = 11 वर्ण
चार चरण, दो दो सम तुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया
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