Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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घनश्याम छंद ,”दाम्पत्य-मन्त्र”

 

घनश्याम छंद “दाम्पत्य-मन्त्र”
विवाह पवित्र, बन्धन है पर बोझ नहीं।

रहें यदि निष्ठ, तो सुख के सब स्वाद यहीं।।

चलूँ नित साथ, हाथ मिला कर प्रीतम से।

रखूँ मन आस, काम करूँ सब संयम से।।
कभी रहती न, स्वारथ के बस हो कर के।

समर्पण भाव, नित्य रखूँ मन में धर के।।

परंतु सदैव, धार स्वतंत्र विचार रहूँ।

जरा नहिं धौंस, दर्प भरा अधिकार सहूँ।।
सजा घर द्वार, रोज पका मधु व्यंजन मैं।

लखूँ फिर बाट, नैन लगा कर अंजन मैं।।

सदा मन माँहि, प्रीत सजाय असीम रखूँ।

यही रख मन्त्र, मैं रस धार सदैव चखूँ।।
बसा नव आस, जीवन के सुख भोग रही।

निरर्थक स्वप्न, की भ्रम-डोर कभी न गही।।

करूँ नहिं रार, साजन का मन जीत जिऊँ।

यही सब धार, जीवन की सुख-धार पिऊँ।।

==================लक्षण छंद:-
“जजाभभभाग”, में यति छै, दश वर्ण रखो।रचो ‘घनश्याम’, छंद अतीव ललाम चखो।।
“जजाभभभाग” = जगण जगण भगण भगण भगण गुरु]121 121 211 211 211 2 = 16 वर्ण
यति 6,10 वर्णों पर, 4 चरण, 2-2 चरण समतुकांत।

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