Sandip Aavad
खामोश सारी मैं उम्र जलता रहा
और राख से खुद को युही लिखता रहा
चुप थे कभी तुम और हम भी थे कभी
फिर कौन ये जो प्यार से बोलता रहा
कोई दर्द जाने न दुनिया में यहाँ
तो मैं अल्फाजों में दर्द लिखता रहा
गलति इतनी थी कि चुप मेरे होठ थे
जालीम वो मुझपर जुल्म करता रहा
न मिला यहाँ कोई सखा अपना मुझे
सुनसान सडकों पर यु ही चलता रहा
* बेवारस *
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