Sandip Aavad
मुंह में मैं भी एक जबान रखता हुँ
राज दिल के मैं लब्जो में खोलता हुँ
ना मिला कोई सुने जो हाल दिल का
कलम से मैं जख्म खोलकर लिखता हुँ
जानता भी तो नही क्या हैं दुवा ये
पर तुझे ही तो खुदा मैं मानता हुँ
क्या रिश्ता तुझ से नही मालूम मुझ को
पर तुझे ही मैं जिगर में देखता हुँ
मानता भी तो नही गैर दुनिया की
और मैं मेरी सिर्फ मैं जानता हुँ
ँ
* बेवारस *
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