Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मुंह में मैं भी एक जबान रखता हुँ

 

Sandip Aavad

 


मुंह में मैं भी एक जबान रखता हुँ
राज दिल के मैं लब्जो में खोलता हुँ

 

ना मिला कोई सुने जो हाल दिल का
कलम से मैं जख्म खोलकर लिखता हुँ

 

जानता भी तो नही क्या हैं दुवा ये
पर तुझे ही तो खुदा मैं मानता हुँ

 

क्या रिश्ता तुझ से नही मालूम मुझ को
पर तुझे ही मैं जिगर में देखता हुँ

 

मानता भी तो नही गैर दुनिया की
और मैं मेरी सिर्फ मैं जानता हुँ



* बेवारस *

 

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