सूर्य की उपासना अनादी काल से ही भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के समस्त भागों में श्रद्धा-भक्ति के साथ की जाती रही है.सूर्य सबके ही उपास्य देव रहे हैं. हमारे देश में सूर्य उपासना के लिए विशेष पर्व छठ है जिसे बहुत ही आस्था-श्रद्धा के साथ मनाया जाता है .’ षष्ठी देवी ‘ दुर्गा का ही प्रतिरूप है . ‘ सूर्य और षष्ठी ‘ में भाई-बहन का संबंध है. इसलिए सूर्य उपासना की विशिष्ट व विशेष तिथि है षष्ठी. ‘ सूर्यषष्ठी ‘ व्रत होने के कारण इसे छठ कहा जाता है. इस पर्व में भगवान सूर्य को डूबते हुए और उगते हुए दोनों रूपों में भाव भरा अर्ध्य चढ़ाया जाता है.
इस अर्ध्यदान में आध्यात्मिक विचार के साथ-साथ वैज्ञानिक विचारों का भी गहन रहस्य भरा है.वेद , उपनिषद , पुराण में विस्तार से इसका उल्लेख किया गया है. वैदिक साहित्य में सूर्यदेव की महिमा का भाव-भरा गायन किया गया है. ‘ सविता ‘ को सूर्य की आत्मा कहा गया है. गायत्री का देवता सूर्य जीवन का केंद्र है.
स्कंद्पुराण में सविता और गायत्री में एकरूपता का वर्णन है.सूर्य आदिदेव हैं.समस्त देवों की आत्मा है.
मनुस्मृति का वचन है -----
सूर्य से वर्षा ,वर्षा से अन्न ,अन्न से अनेकों प्राणियों का जन्म और पोषण होता है.पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र होने के कारण काश्यप कहलाये. कश्यप मुनि की पत्नी अदिति के पुत्र होने से आदित्य नाम पड़ा. प्रखर रश्मियों को धारण करने के लिए अंशुमान कहलाये. काल-चक्र के प्रणेता भगवान सूर्य ही हैं. दिन, रात्रि,मास एवम संवत्सर का निर्माण उनसे ही होता है. सूर्य के दिव्य किरणों में कुष्ठ और चर्मरोग को नष्ट करने की अपार क्षमता है. श्री कृष्ण और जामवंती के पुत्र ‘साम्ब’ सूर्य-उपासना करके ही रोगमुक्त हुए थे. इन्ही कारणों की वजह से सूर्य को आरोग्य का देवता कहा गया है. उनकी वृहत पूजा का विधान क्रम में सूर्य-षष्ठी को अनंत श्रद्धा से मनाया जाताहै .’’सूर्य की महिमा’’ से .....
छठ-पूजा चार दिनों का होता है. कार्तिक शुक्ल चतुर्थी के दिन नियम पूर्वक स्नान पूजा से निवृत होकर अस्वाद भोजन करते हैं. प्याज-लहसून वर्जित है. पंचमी तिथि को ‘खरना’ के रूप में मानते हैं. दिनभर उपवास के बाद,गुड़ के खीर और पूरी की प्रसाद बनाते हैं. खुद भी वही खाते है था प्रसाद के रूप में वितरण करते हैं. ‘षष्ठी’ तिथि को निराहार रहकर पूजा के लिए नेवैद्द्य बनाते हैं. ठेकुआ व मौसमी फल और सब्जियों को भी चढाते हैं. बांस के बर्तन तथा मिट्टी के बर्तनों का उपयोग करते हैं. शाम को डूबते हुए सूरज को दूध का अर्ध्य देते हैं. सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य का इंतजार धूप-दीप जलाकर घंटों पानी में खड़े होकर व्रती करते हैं. सूर्योदय होने पर फिर से दूध का अर्ध्य देकर पूजा पूर्ण करते हैं.
रामायण में- माता-सीता और भगवान राम ने भी सूर्यषष्ठी के व्रत को किये थे..तथा सूर्य से आशीर्वाद प्राप्त किये थे.
महाभारत में - महावीर कर्ण भगवान सूर्य के अनंत भक्त थे प्रतिदिन घंटों गंगा में खड़े होकर उनको अर्ध्य देते थे. यही अर्ध्य दान की परंपरा आज भी प्रचलित है. द्रोपदी भी सूर्यषष्ठी की व्रत की थी.
छठ व्रत को सुकन्या ने भी अपने जराजीर्ण अंधे पति के लिए की थी. ऐसी मान्यता है कि व्रत के सफल अनुष्ठान से ऋषि को आँख की ज्योति तथा युवा होने का गौरव प्राप्त है.
‘षष्ठीदेवी’ दुर्गा का ही प्रतिरूप है. सूर्य और षष्ठी भाई-बहन के प्रेम को दर्शाते हैं. इसी लिए समान भावना के साथ दोनों को पूजा की जाती है.
ये व्रत अपने श्रद्धा और हैसियत के अनुसार खर्च करके कोई भी कर सकता है. यह कठिन व्रत है जिसे तपस्या की तरह ही लोग करते हैं. दैनिक जीवन की मुश्किलों को भुलाकर,गीत गाते हुए आनंद-पूर्वक सेवा और भक्ति भाव के द्वारा इस व्रत को पूर्ण करते हैं. सर्वकामना सिद्धि का ये पर्व सबकी मनोकामना पूर्ण करे.
भारती दास ✍️
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