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Dr. Srimati Tara Singh
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अंजुरी में ज्ञान भरकर

 

अंजुरी में ज्ञान भरकर


श्रेष्ठ साहित्य का हो शुमार

अंजुरी में ज्ञान भरकर

हम चले अरमान लेकर

कवियों के संग-शोर में

लेखनी के होड़ में

पर हमें इतना पता है

समय कहाँ आकर रुका है

अक्षरों का समूह बनकर

साहित्य रह गया है खोकर

साहित्य की विधा समझ पर

प्रश्न चिन्ह है आज उस पर

पत्रिकाओं में केवल मनोरंजन

कुरूप विकृतियों का होता चित्रण

हिंसा और कामुकता का मिश्रण

दुष्प्रवृति बढ़ता ही हर क्षण

साहित्य समाज का होता दर्पण

कवि करतें है उसको अर्पण

जन के मन में चिंतन आये

दुश्चिन्तन न कभी सताये

साहित्य सृजन का रूप है

संवेदना का स्वरुप है

समाज का परिवेश है

उत्साह और संघर्ष है

भावनाओं का प्यार है

उद्देश्य वेशुमार है

विचरता हुआ विचार है

सोच का आविष्कार है

सरल-सरस प्रवाह है

शब्दों का निर्वाह है

वो कवि जो ऋषि तुल्य थे

वेद-पुराण के उचित मूल्य थे

वो सृजन क्षमता कहाँ है

वो प्रखर विद्द्ता कहाँ है

सत्साहित्य जो रच गए हैं

कवि-जूथ वो अमर हुए हैं

उत्कृष्ट दिशा दिखाती रचना

भाव-विभोर कर देती रचना

लोक-स्पर्श कराती रचना

मानस-पटल पर छाती रचना

हो सुन्दर साहित्य सदा

बहती रहे काव्य सुधा

श्रेष्ठ साहित्य का हो शुमार

ख्वाहिश यही हो वेशुमार

भारती दास ✍️



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