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Dr. Srimati Tara Singh
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आतंकबाद

 

आतंकबाद
आतंक है एक प्रवृति का नाम
जो जम गया देशों में तमाम
है न इसकी कोई जाति
न है इसका कोई ईमान.
आतंकबाद हुआ है तबसे
महाभारत का दौर था जबसे
ऐसी ही कुछ बातें हुई थी
द्वेष क्रूरता बदला छल से.
उत्तरा के गर्भस्थ शिशु को
बचाये थे ब्रह्मास्त्र से उसको
था ये कृत्य कलंक भरा
रोष भरा था उर में सबको.
इस तरह आतंक है बदला
मजहवी विषाद है बदला
भोले भाले चेहरे वाले
लोगों ने विवाद है बदला.
मंदिर-मस्जिद तोड़ ही देता
भावनाओं की हत्या करता
ब्यक्ति समाज जीवन अनमोल
तोड़ मरोड़ कर ही रख देता.
किस रूप में कहाँ पर होगा
स्वस्थ मन या बीमार सा होगा
समाज के अंदर वो कुछ ऐसा
घृणित कार्य करता ही होगा.
कुत्सित मानसिकता की बुद्धि
निर्दयता का ही परिचय देती
धन-लोलुपता है उसकी आशा
बेरोज़गारी हताशा जो होती.
षडयंत्र का ताना-बना बुनकर
करता हत्या हिंसा सारी
विनाश कार्य करते ही रहते
न जाने क्या है लाचारी.
प्रकृति का अपना है ढंग
बच नहीं सकता वे उदंड
विधि का है विधान सुन्दर
जो है आदि वो होगा अंत.
भारती दास

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