Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

देश को रहा गर्व है

 
देश को रहा गर्व है

इतिहास के अध्याय में
क्रांति वीर से ही शान है
स्वार्थ लोलुप सभ्यता से
रो उठा अभिमान है.
माताएं मौन थी विवश
दीनता की बोध से   
तार-तार थे ह्रदय
क्रूरता की क्षोभ से.
भयभीत भूमि क्षुब्ध थी
धधक रहा गगन था
आंचल से रक्त पोंछकर
अश्रु पूरित नयन था.
देश की उस आन पर
जिसने चढ़ाया लाल था
कोख सूनी हो गयी थी
सिंदूर विहीन कपाल था.
नयी-नयी उलझनों से
रोया ना पछताया था
निज बुद्धि के प्रदीप से
आगे बढ़ वो आया था.
आज कोई भूल से
आदर्श बन आये जो
लेकर स्वरुप राम का
अन्याय फिर मिटाये जो.
नीति ज्ञान से सदा ही
रहा कर्म श्रेष्ठ है
उन शूरवीर पुत्र पर
देश को रहा गर्व है.           
 भारती दास ✍️



Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ