कल्पने तू पंख पसार
कल्पने तू पंख पसार
साथ तेरे हम भी विचरें
ख्वाबों में इक बार,
कल्पने तू पंख पसार.......
नील गगन में पिता मिलेंगे
भाई से हम बातें करेंगे
नैन हमारे छलक परेंगे
खुशियों से बेजार , कल्पने तू......
बादलों से जा मिलेंगे
बूंदे बनकर आ पड़ेंगे
सूखे वसुधा पर गिरेंगे
भर उठेंगे दरार , कल्पने तू........
जग हंसी मेरा उड़ाये
सपने भ्रम के टूट जाये
अपने सारे रूठ जाये
गम नहीं बेकार , कल्पने तू........
आशायें रब से रखेंगे
ना निराशा से डरेंगे
व्यर्थ यूँ ही ना फिरेंगे
हर गली हर द्वार ,
कल्पने तू पंख पसार.
भारती दास ✍️
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY