कर्महीनता दुर्योधन की
संजीदगी जिसने निभाई
जो संजीदा हुआ यहां
उसका मकसद उसका जीना
प्रवाह प्रकाश का हुआ यहां.
अपमान-मान-अभिमानत्यागकर
धीरता को अपनाया है
ढाल एकता का बनाकर
विषाद गंभीर मिटाया है.
धीरज चित्त से अन्न उगाता
स्थिर होकर देखता बाट
श्रमके साधक पुलकित हो कर
सहयोग सिखा देता है विराट.
ध्येय हो कोई लक्ष्य हो कैसा
कार्य धैर्य से करना है
संजीदगी का सुंदर भूषण
खुद में धारण करना है.
मदिरा की खुल गई दुकानें
मौत के नाम जाम हुआ है
महीनों की जो थी तपस्या
पलभर में ही नाकाम हुआ है.
धीर गंभीर संवेदन मन में
सुख सिमट कर आता है
विकृत होती मानसिकता से
प्रीत विकट बन जाता है.
कर्महीनता दुर्योधन की
स्पर्धाओं से रहा अधीर
दुर्बलता थी धृतराष्ट्र की
मोह को समझा था गंभीर.
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY