Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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लेखनी हर-पल कुछ कहती

 

लेखनी हर-पल कुछ कहती

कागज पर जो छपते अक्षर

काले रंग ही होते अक्सर

अभिव्यक्ति बन जाती बेहतर

सदचिंतन देती उर में भर .

श्याम रंग से लिखी इबादत

अंतस की बन जाती चाहत

चित भले हो कवि का काला

शुभ्र पंक्तियाँ भर देते उजाला

भाव विचार का ताना-बाना

कह देते हैं कसक वेदना

भाषायें शब्दों से बनती

शब्द हो चाहे उर्दू-हिंदी

प्रत्येक शब्द का होता मूल्य

जो दर्शाता है सामर्थ्य अमूल्य

अर्थ-ध्वनि का होता समावेश

करता निर्मित पात्र और वेश

भावनाओं में भीगा स्वरुप

अपनत्व भरे बहुतेरे रूप

रोम-रोम आनंदित करते

मंद समीर बन मन को छूते

संवेदना में भींग जाते हैं स्वर

वेदना कभी बन जाते हैं प्रखर

कहीं फूलों सी खुशबु बन जाती

कहीं प्रेरणा बनकर मुस्काती

कागज के उजले पन्नों पर

बन जाती अनमोल बिखर कर

लेखनी हरपल कुछ कह जाती

अनंत भावों संग बह जाती.


भारती दास ✍️


 

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