पूर्ण-चन्द्र की शीतलता सी
खिले-पुष्प की कोमलता सी
मृदुल-स्नेह की विह्वलता सी
ईश की अनुपम सुन्दरता सी.
दायित्व निभाती हर पल सारे
बहाती ममता साँझ-सकारे
निर्बाध रूप सरिता सी बहकर
विघ्न अनेकों सहती अक्सर.
मूढ़-असभ्य-अशिक्षित-निर्धन
शिष्ट-शालीन या स्व-अवलंबन
नयन में अश्रु कंठ में क्रन्दन
सुध-बुध खोती मोह में तत्क्षण.
अबोधवश या अभाव के वश
हुई भूल जो कोई बरबस
माँ की महत्ता समझ में आये
अवसान दिवस का हो ना जाये.
भारती दास
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY