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Dr. Srimati Tara Singh
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मनाते मूर्ख दिवस अभिराम

 
मनाते मूर्ख दिवस अभिराम
मूर्ख बनाते या बन जाते
मखौल उड़ाते या उड़वाते
दोनों ही सूरत में आखिर
हंसते लोग तमाम
छेड़ते नैनों से मृदु-बाण....
मन बालक बन जाता पलभर
कौतुक क्रीड़ा करता क्षणभर
शैशव जैसे कोमल चित्त से
भूलते दर्प गुमान
होते अनुरागी मन-प्राण....
सरल अबोध उद्गार खुशी का
हंसता अधर नादान शिशु सा
क्लेश कष्ट दुख दैन्य भुला कर
सहते सब अपमान
देते शुभ संदेश ललाम....
मूर्ख दिवस का रीत बनाकर
सुर्ख लबों पर प्रीत सजाकर
मनहर हास पलक में भरकर
गाते खुशी से गान
मनाते मूर्ख दिवस अभिराम....
भारती दास ✍️ 


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