ठहर जाओ घड़ी भर तुम
ठहर जाओ घड़ी भर तुम
जरा ये देख ले आँखें
थे सबके प्राण से प्यारे
किये अर्पण जो तुम सांसे.
जहाँ रौनक सवेरे थी
वही अब कंज मुरझाया
हुआ सूना सा अब आँगन
तिमिर बन गोधूली रोया.
हुआ व्याकुल सा नभ का पंथ
सिहर उठा है ये तारे
ह्रदय में है कसक उठी
हुए गीले पलक सारे.
जीवन विषाद बनकर
कहाँ ले जायेगा कल को
प्रति-क्षण याद आओगे
कहाँ ढूढेंगे हम तुमको.
पल ये दुखद मिटकर
कभी इतिहास बन जाये
दिलों में देश के बसकर
अमर ये नाम हो जाये.
भारती दास
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