Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी

 

संत रविदास जी की जयंती पर 


प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी

सद्गुण ही पहचान बताता


कोई जाति से महान न होता


किसी भी भूमि में खिले हो फूल


खुश्बू से जग को महकाता.


वो यवनकाल था भीषणतम


उत्पात कई था गहनतम


अपमान भयंकर था उत्पीड़न


विवश-विकल था मानव मन.


संत शिरोमणि हुए थे रविदास


समकालीन थे उनके कबीर दास


आस्था जनता की थी निराश


संत मतों पर टिकी थी आस.


संघर्षों से ही प्रारंभ हुआ


जीवन उनका आरम्भ हुआ


ओछी नीची जाति सुन-सुन


चित में उदय वैराग्य हुआ.


चमड़े के जूते बनाते थे


ईश का वंदन करते थे


कहते उन्हें अछूत सभी


पर भीमानव धर्म निभाते थे.


भक्ति का अधिकार नहीं था


कुरीतियों का प्रतिकार नहीं था


समाज के वे भी अभिन्न अंग हैं


ये कुलीनों को स्वीकार नहीं था.


रामानंद उनके गुरु हुए थे


कुटिया में भी साथ पधारे थे


मीरा उनकी शिष्या हुई थी


संतों में सबके वो प्यारे थे.


"प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी


जाकी अंग-अंग प्रीत समानी"


जाति-पांति पूछे नहीं कोई


हरि को भजे सो हरि का होई "


प्रेरणादायी है उनके उपदेश


है भक्ति के पावन उन्मेष


सत्य-निष्ठा-कठिन-परिश्रम


     बना दिया उन्हें संत विशेष.            


भारती दास ✍️



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