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सिर पर हिम का ताज सुशोभित

 

Bharti Das


22 घंटे  · 

सिर पर हिम का ताज सुशोभित

सिर पर हिम का ताज सुशोभित
जिस चरणों को धोता सागर
गंगा यमुना सारी नदियां
जहां पर भरती स्नेह की गागर.
जहां कबीर रहीम के दोहे
सिखलाते हैं प्रेम की आखर
जहां बुद्ध की सुंदर वाणी
कर देते हैं सत्य उजागर.
जहां गुरु नारायण होते
राम कृष्ण लेते अवतार
जहां मित्र के हाल पर रोते
करूणाकर के नेत्र बेजार.
जहां कुरान की आयतें देती
अल्ला की रहमत अपार
गीता की पावनता कहती
कर्म का फल है जीवन सार.
जहां भेद नहीं करता था
हिन्दू मुस्लिम के ललकार
क्यों भीषण आतंक मचाता
दिल्ली के बेशर्म गद्दार.
धूल धूसरित हो रही है
वीरों का स्नेहिल उपकार
जिसने शिशिर सर्द हवा को
झेला था भर के उदगार.
श्रद्धा सुमन करते हैं अर्पण
दिया जिन्होंने जीवन हार
उन धरणी सुत के यादों में
आज मनाये राष्ट्रीय त्योहार.
 भारती दास ✍️





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