विधाता का है उपहार
क्यों छोड़ चले संसार
था खुद पे नहीं एतबार
क्यों.........
था सबकुछ तो जीवन में
थी कैसी कमी तेरे मन में
किस बात से मान ली हार
क्यों...........
प्राणी चेष्टा करता है
किसको सबकुछ मिलता है
करते क्षण का इंतजार
क्यों............
कुछ लोग सहायक होते
कुछ बाधा बन बन जाते
है जग का यही व्यवहार
क्यों.............
उपेक्षा तो वहीं करते हैं
जो तुच्छ तृषित होते हैं
वो भरमाते हैं बेकार
क्यों..............
सबको जाना है एक दिन
यही सत्य बड़ा है भ्रम-हीन
क्यों अधीर हुये लाचार
क्यों............
ये जीवन है वरदान
इसे नष्ट न कर इंसान
विधाता का है उपहार
क्यों...........
भारती दास
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