कहानी - जीत और हार के बीच .... द्वारा- विमला भंडारी
अब मैं नहीं बचनेवाली. मेरी मौत लगभग निश्चित है. सारी तैयारी हो चुकी है. शायद कुछ दिन या कुछ घंटे, पता नहीं लम्हे ही शेष हो पर कितने बस यहीं तय नहीं है. पता नहीं कब? मौत किस घड़ी और क्या रूप लेकर आयेगी ये तो केवल श्याम ही बता सकता है. रूक्मणी का श्याम, जिससे रूक्मणी का सात फेरो का संबंध है. केवल उसे ही मालूम है, क्योंकि वो सारी तैयारी कर चुका है.
आपको बता दूं, रात ही उसने सारे कागजात पर मेरे हस्ताक्षर करवा लिये थे. कागज लाईफ इन्श्योरेंस के थे शायद. मुझे तो खाली फार्मो पर निशान लगी जगहों पर साईन करना था. श्याम से मेरा परिणय कराते वक्त मेरे जन्मदाता, मेरे पालनहार कभी आपने सोचा भी नहीं होगा कि मेरी बेटी का हाथ जिस हाथों में थमा रहा हूं वह आदमी इतना कमीना निकलेगा कि मारने से पहले उसका जीवन बीमा करवा लेगा ताकि मारने के बाद बीमे की राशि उठा सके.
आप मुझ पर अवश्य नाराज होंगे कि यह सब मैंने पहले समय रहते आपको क्यों नहीं बताया. मैं बताना नहीं चाहती थी कि आपकी टेंशन और बढ़ाÅं. पहले से ही आप ब्लड प्रेशर के मरीज है. पर अब अपने पिता को सच बताकर मैं खुद मरना चाहती हूं. क्यों? क्योंकि क्या रखा है इस जिन्दगी में? क्या इसे ही जीना कहते है तो फिर मुझे नहीं जीना. इस रोज रोज की जिल्ल्तभरी जिन्दगी से तंग आ चुकी हूं मैं. पहले ही मेरी वजह से आप लोग कितने परेशान हुए. आखिर इनकी मांगों को कहां तक पूरा करेंगें? टुकड़ों टुकडों में कितना पैसा लुटा चुके आप फिर भी इनको संतोष नहीं. हर बार नया धंधा और फिर हर बार वहीं घाटा. ठीक से कारोबार किया नहीं जाता और उपर से ये शेयर बाजार का चस्का. कितना पैसा लुटा चुके है दुगना तीगुना बनाने के फेर में. और उस सब की खीज उतरेगी मेरी देह पर. जरासा कुछ बोलूं तो काटने दौड़ते है.
आपने कहा तो मैंने परिस्थिति से समझौता कर लिया था. मौन धारण कर ली थी. चाहे डिब्बे में आटा हो या ना हो, चाहे बिजली का बिल न भरा जाय और कनेक्शन कट जाय. सबकुछ सहना सीख लिया था मैंने. फिर भी कल रात इन्होंने मेरा बीमा करवाया. मैं जानती हूं कि इतना रूपया भी नहीं है इनके पास कि ये बीमे की एक किश्त भी भर सके. अच्छा बहाना ढूंढ़ा पैसा कमाने का.
किसी ने सच ही कहा है - पैसे में बहुत बड़ी शक्ति है. पैसे के आगे इन्सान की जिन्दगी का क्या मोल? बीमे से अच्छी खासी रकम जो मिल जायेगी. बीबी एक मर जाय तो क्या हुआ, दूसरी आ जायेगी. कैसे एक इन्सान लालच में डूबा दरिन्दा बन जाता है.
खट....·....खट...·..·...खट..···· तभी जोर जोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज होने लगी. रूक्मणी का चलता पेन ठिठक गया.
रूकमणी...ए रूकमणी....सो गई क्या?....दरवाजा खोल....इसके साथ ही उसने फटाफट लिखे हुए कागज को फाड़कर तहकर समेट लिया. ‘इसे कहीं सुरक्षित जगह रखना होगा.’ अभी वह इधर उधर निगाहें दौड़ा रही थी कि दरवाजा फिर भड़भड़ा उठा. अबके तो ऐसा लगा था मानो दरवाजा टूट ही जायेगा. रूक्मणी ने आव देखा न ताव अपने पिता को लिखा हुआ वह खत तह किया और अपने ब्लाऊज में खौंस लिया.
उसने दरवाजा खोल दिया और वह पीठ उल्टी किये हुए खड़ी हो गई. इस गलती के लिये वह तैयार थी - मारो जितना मारो. जिस्म से चाहे सारी चमड़ी उधेड़ डालो. उफ ! तक नहीं करूंगी. अब जीने की चाहत ही किसमें बची है.
पर श्याम ने उसे छुआ भी नहीं बल्कि गुनगुनाता हुआ आगे बढ़ सरक गया. श्याम गुनगुना रहा है? कितना खुश है यह जालिम आदमी? वह तिरछा खड़ा था. उसकी अंगुलिया नोट की गड्डी गिन रही थी. वह भौंचक्की खड़ी देखती रह गई. इतने नोट, कहां से आये?
उसने रूपये गिने और अलमारी में रख दिये. अलमारी का ताला जड़ चाबी अपनी जेब के हवाले की और इत्मीनान से बिछे पलंग पर पसर गया. उसकी आंखें मूंदी हुई थी. वह बुत बनी एकटक उसे देख रही थी.
कुछ देर बाद वह बोला, ‘‘चाय नहीं पीलाओगी...और सुनो तुमसे मुझे कुछ जरूरी बात करनी है.’’
वह यत्रंवत चाय बना लायी थी एक कप.
‘‘दूसरा कप कहां है....तुम नहीं पीओगी? अपना ध्यान रखा करो. देखो कितनी कमजोर हो गई हो आजकल.चलो कल किसी लेडी डॉक्टर को दिखा लाता हूं.’’ इतना कहते हुए उसने रूक्मणी को बाहों में भर लिया. सांसों की गर्म उच्छवास उसके गालों को छूने लगी. उसका âदय तेजी से धड़कने लगा. ‘पता नहीं किस पल गला दबा दें.....’श्याम की उपस्थिति उसे जितना भयभीत नहीं कर रही थी उतने उसके हावभाव उसका दिल दहला रहे थे. ठण्डा पसीना उसके बदन को तर कर गया.
लगभग ढ़ाई साल गुजर गये है शादी किये. उसने अंगुलियों पर वर्ष व महीने गिने. विवाह की ये छोटीसी उम्र......न चाहते हुए भी उसकी आंखें भर आई.
कल सचमुच वह उसे लेडी डॉक्टर के पास ले गया. डॉक्टरनी ने उसका परीक्षण करके कहा - ‘‘शी इज परफेक्टली ऑल राईट एण्ड फीट. आई थींक फूली बेटर चांसेस और उसने कागज पर दवाईयों की, जांच की लम्बी पर्ची बना दी. डॉक्टर को फीस देकर वह बाहर निकल आये. उसे वेटिंग चेयर पर बिठाकर ‘अभी आया’ कहकर श्याम चला गया. वह असमंजस में डूबती तिरती रही. वैसे भी उसने अपने जीवन के लिये जिद्दोजेहद करना छोड़ दिया था.
श्याम जब वापस लौटा तो उसके साथ में एक अधेड़ दम्पत्ति थे. उनका परिचय कराते हुए उसने कहा - इनसे मिलो रूक्मणी, ये है कौशलजी और ये इनकी धर्मपत्नी और उसका परिचय उनसे देते हुए वह बोला...ये रूक्मणी...शी इज माई वाईफ. वे दोनो रूक्मणी को देख बहुत खुश हुए. वह थुलथुले शरीर वाली गौर वर्ण वाली सम्पन्न प्रौढ़ा उसकी ओर मुखातिब हुई कहने लगी, ‘‘मैं हूं मीरा, तुम मुझे दीदी कह सकती हो. बदले में वह हल्के से मुस्कुरा दी तो उन्होंने भी हौले से उसकी पीठ थपथपा दी.
‘‘चलो चलते है.’’ श्याम ने कहा. वे सब साथ साथ अस्पताल परिसर से बाहर निकल गये.
मीरा जी से यह उसका पहला परिचय था. इसके साथ ही रूक्मणी के जीवन में बहुत कुछ बदल गया. श्याम कभी उसका इतना ध्यान रखेगा इसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी. आखिर एकाएक यह परिवर्तन कैसे आया वह खुद स्तंभित थी.
श्याम का उसे नियमित अस्पताल ले जाना. जांच करवाना. दवाईया, फल, दूध-टॉनिक सबकुछ मिलाकर इतना कुछ किया श्याम ने कि वह बीमा वाली बात तो मन में कहीं दबसी गई थी. उसका लम्बा इलाज चला. जिस दिन से मीराजी की परछाई उसके जीवन पर पड़ी थी उसके जीवन का रंग ही बदल गया था. ‘कुछ लोगों के चरण बड़े पावन होते है वे जहां पांव रख दे स्वर्ग बना दे.’ कुछ कुछ ऐसी ही धारणा बन रही थी रूक्मणी की मीरा जी के प्रति.
उसे दो महीना उपर चढ़े है. कुछ अच्छा नहीं लगता है. मुंह कसैला कसैला रहता है. उबकाई आती है. हर चीज में गंध आती है. जो उसे बर्दाश्त नहीं होती. वो कितना ही खुद को रोके उल्टी हो ही जाती है. अन्न का दाना उसके पेट में नहीं ठहर रहा था. ऐसे में मीरा दीदी उसकी परिचर्या इस तरह कर रही थी मानो सगी दीदी हो. सगे से भी बढ़कर दुनिया में अपना कोई हो सकता है? मानवीय रिश्ते इतने आत्मीय और संवेदनशील हो सकते है? मन में उठते इन सुखद प्रश्नों का उत्तर मीरा दीदी से निगाहे मिलते ही मिल जाता था.
मातृत्व का सुख इतनी मधुरिमा, इतना सुख लेकर आयेगा, उसने सोचा भी न था. मीरा दीदी के ऋण से वह कैसे उऋण होगी? कभी कभी वह सोचने लगती. कभी फल लाती और खुद काटकर खिलाती थी. तो कभी जूस ले आती थी. श्याम तो दूध जबरदस्ती उसके मुंहमें उडेल देते थे. कैसे सुहाने दिन और स्वपनिले पल थे. भविष्य को मन में संजोये वह कल्पना में विचरने लगी. एक नन्हा मुन्ना उसकी दुनिया को आबाद करेगा. मुन्ना होगा या मुन्नी अक्सर वह श्याम से पूछ बैठती थी. श्याम जवाब नहीं देता जैसे सुना ही न हो. वह दोबारा पूछती तो वह बड़े तटस्थ भाव से कह बैठता - ‘‘क्या फर्क पड़ता है, कुछ भी हो.’’
‘‘अच्छा बताओ क्या नाम रखेंगे?’’ हठात~ वह पूछ बैठती.
‘‘अब सो भी जाओ, तुम्हंे नींद नहीं आती, देखती नहीं मैं दिनभर का थक गया हूं.’’कहते कहते वह आंखे मूंद लेता. रूक्मणी उसके बालों में अंगुलिया फिराने लगती. ‘कैसी होगी बच्चे की शक्ल.....मुझ पर या इन पर...गौरा गौरा या सांवला सलोना. ममता के हिचकोले पर पैंगे भरते भरते उसकी कब नींद लग जाती और लुभावने सपनों की दुनिया उसके सामने अपने रंग बिखेर देती.
शारीरिक बैडोलता और कष्टप्रद उठबैठ के बावजूद भी सुहाने दिन पंख लगाकर गुजर गये. उसे प्रसव वेदना हुई. श्याम ने कौशलजी को फोन किया. वे दोनो दौड़े दौड़े आये और रूक्मणी को अस्पताल ले गये.
प्रसूतिगृह में उसे पूरा होश था. मीरा दीदी उसे पूरा दिलासा देती रही. ‘उसे बच्चा हुआ है. रोने की किलकारी सुनते ही वह अपनी सारी वेदना भूल गई. दवाई की ड्रीप उसके हाथ में लगी हुई थी. नर्स ने उसमें इंजेक्शन लगाया. ‘‘सिस्टर लड़का हुआ है या लड़की’’ उसने पूछा. पर उसकी पलके भारी होने लगी. फिर उसे कुछ ध्यान नहीं.
जब उसकी बेहोशी टूटी तो उस पर गाज गिर चुकी थी. उसे सहज ही विश्वास नहीं हुआ. सबसे पहले उसने अपनी बगल टटोली. उसे सूनी पाकर वह बहुत छटपटाई. ये कौन छलिया उसके साथ छल कर गया. वह बहुत रोई, बहुत चीखी चिल्लाई. ऐसा धोखा तो किसी बैरी दुश्मन के साथ भी ना हो.
वो मां बनी जरूर थी पर ‘सेरोगेट मदर’. मीरा दीदी ने किराये पर ली थी उसकी कोख. हरे नीले नोटो के बदले उनके बच्चे को पाला था उसने अपने पेट में और उसे जन्म भी दिया.. बीज उनका था पर अपने रक्त और मांस मज्जा से न केवल सींचा था. न केवल अपने सपने संजोये थे बल्कि जन्म देने के कष्ट को भी हंसते हुए, दांतों से होठ दबाकर हंसते हुए सहन किया था. तब उसे क्या पता था कि उन तीनों ने मिलकर उसके साथ कितना बड़ा खेल खेला था. एक भंयकर षड़यंत्र था. सबको दोष क्यों दे? अपनी रूक्मणी को तो उसके श्याम ने ही ठगा था. कलयुगी श्याम ने. सबसे बड़ा दोषी तो वह है जिसने हरे नीले नोटो की गड्डियों के बदले अपनी प्रिया की कोख किराये दे दी थी. श्याम ने उसकी स्वीकृति नहीं मांगी तो क्या हुआ, बीमे के कागज कहकर स्वीकृति के हस्ताक्षर तो धोखे से करवा लिये थे. वाह! क्या तरीका निकाला था श्याम ने. अब उसे मारने की क्या जरूरत है, अब तो वह उसके स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखता है. खुराक का पूरा ध्यान रखता है, ताकि उसकी कोख को फिर से किराये पर दे सकें. वह तो सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी जो बन गई है उसके लिये. पर वह ऐसा अब हरगिज नहीं होने देगी. कानून का द्वार खटखटायेगी.
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