Buddhi Nath Mishra is with Buddhinath Mishra.
हँसिया और तलवार
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कभी नहीं भाती हँसिया को
चांदी की तलवार।
दिन भर बैठी रहती है यह
ऐश म्यान में करती है यह
इसे चाहिए मखमल सेज
मालिक इसको रखे सहेज ।
मैं खटती रहती दिन-रात
मुझ बिन बने न भोजन-भात
नींबू काटूँ, मिर्ची काटूँ
सब्जी काटूँ सायं-प्रात।
और एक यह है, जो करती
सिर्फ किसी गर्दन पर वार
मैं जीवन हूं और मौत यह
दोनों हैं लोहे की धार।
कौन हँसाता , कौन रुलाता
जग क्यों इसको समझ न पाता
एक मौत का सौदागर है
और दूसरा जीवनदाता।
महँगी वही न जिसकी
जोवन को कोई दरकार
कभी नहीं भाती हँसिया को
चांदी की तलवार।
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3 अप्रैल,2004
विवेक विहार, देहरादून
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