Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

कजरी

 

कजरी

झूले निमिया की डार मेरा प्यार पिया
सोलहो सिंगार पिया ना।
मेहा झुकि झुकि आए,
 मेरा कजरा बहाए

मांगे हमसे झुलनिया उधार पियासोलहो सिंगार पिया ना।
बरसे बुंदन के बान,
भीजे सगरो सिवान
बहे देहिया में नदिया की धार पिया
सोलहो सिंगार पिया ना।
बोले मोर चहु ओर,
बहे पुरवा झकोर
पापी चुनरी उड़ाए बार-बार पिया
सोलहो सिंगार पिया ना।

©डॉ.बुद्धिनाथ मिश्र
 


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ