सावन की झींसी में भींगी है बंसी -धुन
बादल घिर आते हैं अंतस में जिसको सुन।
फिर भी तुम कहते हो हँसने को , हँसती हूँ
कस्तूरी मिरगा -सी गाँसों में फँसती हूँ।
© डॉ बुद्धिनाथ मिश्र
@ 7060004706
— with Buddhinath Mishra.
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सावन की झींसी में भींगी है बंसी -धुन
बादल घिर आते हैं अंतस में जिसको सुन।
फिर भी तुम कहते हो हँसने को , हँसती हूँ
कस्तूरी मिरगा -सी गाँसों में फँसती हूँ।
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