श्री अरविन्द की योग दृष्टि क्या है ?------चरण सिंह केदारखंडी
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सबसे बड़ी और गंभीर बात यह है कि श्री अरविन्द ने योग को जीवन का हिस्सा नहीं बल्कि जीवन को योग का हिस्सा मानते हुए अपनी क़िताब The Synthesis of Yoga के पहले अध्याय में योग को परिभाषित करते हुए कहा :
ALL LIFE IS YOGA...
हमारा सारा जीवन ही योग है।
योग की इतनी विराट परिभाषा आपने किसी और जगह नहीं पढ़ी होगी...
भारत में सदियों तक संसार और योग को अलग अलग समझा गया। दुनियावी चीज़ों को माया और मिथ्या मानकर त्याज्य माना गया... जीवन की सामान्य लेकिन बुनियादी ज़रूरतों को योग से बाहर की चीज़ समझा गया... खाना, सोना, सुनना, बात करना, दैनिक कार्यकलापों और कामों को मामूली और लगभग बेहोशी में किया जाता रहा है। किसी ने ये माना ही नहीं कि ये चीज़ें तो योग का आधार है...
जिस अदृश्य अगोचर आत्मा में हम योग की छलांग लगाना चाहते हैं शरीर तो उसका आधार है...
अपनी 24 हज़ार पंक्तियों की कविता सावित्री में उन्होंने लिखा :
This body is the chrysalis of the soul..
शरीर भले ही योग का अंतिम शिखर न हो लेकिन उसके बिना योग की शुरआत की कल्पना भी नहीं की जा सकती...
जैसे ही यह समझ आता है कि हमारे जीवन की हर घटना योग है, हमारे शरीर, मन, वचन और कर्म की हर चेष्टा का नाम योग है... वैसे ही साल में सिर्फ़ एक दिन को योग दिवस मनाने का औचित्य नहीं रह जाता है...
फिर भी आज के दिन को योग दिवस घोषित करने से इसे विश्व फ़लक पर प्रतीकात्मक पहचान मिली है और लोग कसरत के बहाने ही सही, योग शब्द के प्रति जागरूक हुए हैं...
योग की परिभाषा को लेकर भारत में हमेशा भ्रम की स्थिति रही है...और अभी भी है। जब श्री अरविन्द ने सारा जीवन ही योग है** का सूत्र देकर योग को समझाना चाहा तो उनका मतलब जन्म और मृत्यु के बीच के इंसानी अंतराल वाले जीवन से ही नहीं है...
जीवन अर्थात Life Force... God in Action !
जीवन अर्थात पंछी के गान से लेकर चींटी के श्रम में संवारती चेष्टा !
जीवन अर्थात प्रकृति और पेड़ पौधों की धड़कनों का एहसास...
हमें सुबह अच्छी लगती है, फूल क्यों मनमोहक लगते हैं?
उड़ते हुए परिंदों की टोली में हम लय की लयात्मकता क्यों खोजते हैं?
तितली के पंखों की कड़ाई करने वाले कारीगर का पता क्यों खोजते हैं?
क्यों रुमानियत का कवि वर्ड्सवर्थ अपनी यायावरी की तुलना बादल से करता है।
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