Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आशिक़ों का कोई रब नहीं हुआ करता

 
आशिक़ों  का कोई  रब नहीं  हुआ करता 
जवाँ  दिलों  का  मजहब नहीं हुआ करता।

दीवारें इश्क़ में कभी खींच न पायी दुनिया 
प्यार को जग  से  मतलब नही हुआ करता।

भूख इंसान को छल्लों से निकलवा देती है  
भरे  पेटों  से कोई करतब नहीं हुआ करता।

सिलवटों की वज़ह  बदनाम हो गई हैं शब 
काम  दिन में  ग़लत कब नहीं हुआ करता।

ज़ुबाँ से निकला लफ्ज़ लौटकर नहीं आता
चिराग़ से जिन्न ये  ग़ायब नहीं हुआ करता।

युग तो बदले मगर लोग नहीं बदला करते 
वो क्या तब था जो अब  नहीं हुआ करता।

उसकी बातों का कुछ सबब होगा 'दीपक' 
वहाँ पर कुछ भी बेसबब नहीं हुआ करता ।

@ डॉ .दीपक शर्मा

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