गूँगा गायेगा बहरा सुनेगा
अँधा देखेगा लँगड़ा चलेगा
लूला फेंकेगा भारत देखेगा
चूल्हे पे ख़्याली रोटी सेंकेगा।
सारे बकलोल एक साथ होंगे
बातें ही बातें खाली हाथ होंगे
वायदे लुभावने दिन रात होंगें
घर घर फ्री में दाल भात होंगे।
कुछ हैं मिरासी कुछ हैं गिलासी
मक्खन के वादे नहीं रोटी बासी
हँसती सियासत जनता रुआँसी
ताली बजाये तो आ जाये खाँसी।
दीपक जले तो धुआँ है निकलता
मुखौटा लगाकर रहबर निकलता
चेहरे के भीतर चेहरा निकलता
मोहरे के नीचे मोहरा निकलता।
* डॉ. दीपक शर्मा *
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