Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

ज़िन्दगी ज़िंदाबाद

 
  ज़िन्दगी ज़िंदाबाद

रहे न शख़्स कोई भूखा मिले हर पेट को रोटी
कोई दावा नहीं करते मगर ये कोशिश है छोटी
निवाले देके भूखों को करें हम भूख को बर्बाद
ज़िंदगी देके दुआ बोल रही जिंदगी ज़िंदाबाद।

जैसे मुझको लगती है वैसे ही उसको लगती है
एक सी भूख होती है एक सी सबको लगती है
ये हमने ठान लिया हो अन्न  से पेट हर आबाद
ज़िंदगी देके दुआ बोल रही ज़िंदगी ज़िंदाबाद।

हमारे  साथ  आइये  कड़ी  बन  जुड़ते  जाइये
अँधेरा मिट ये जाएगा दीपक सा जलते जाइये
आहुति से हवन में कीजिये शुद्धि की शुरुआत
ज़िंदगी देके दुआ बोल रही ज़िंदगी ज़िंदाबाद।

@ डॉ. दीपक शर्मा

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ