देवलोक से उतरकर, अवतरित हुईं धरा पर
मोक्षदायिनी मां गंगा, पावन पवित्र निर्झर।
पितरों को तुमने तारा, जीवन मनुष्य उबारा
धरती की प्यास बुझाई,भारत का रूप सँवारा।
नहीं कल्पना कि तुम बिन,अवशेष शेष हमारा।
प्राणों में हो समाहित,जन्म मृत्यु तुम पर निर्भर।।
शंकर जटा विचरती,कलकल संतूर सी बजती
वैतरणी पार करातीं, स्वर्ग सी कर दी धरती
बह रहीं निस्वार्थ युगों से, मानव के पाप हरती।
ले जाता जग संग में, लोटा कमंडल भरकर।
वेदों में है वर्णन तेरा, है देवों का तुममें डेरा
रत्नों की भंडार भरे, करें गन्धर्व यक्ष बसेरा
सबजन समान तुमको, ऋषियों ने तुमको चेरा।
आँचल में तेरे होगा, जब दीपक जाये तजकर।।
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