| Tue, Dec 10, 5:23 AM (1 day ago) |
|
वो मुझको क्यूँ सदा नहीं देता
गुनाह मेरे क्यूँ गिना नहीं देता।
मर्ज़ मेरा लाइलाज़ ही सही
चारागर क्यूँ दवा नहीं देता।
हाथ पदना जब आता है तो मेरा
मुस्तकबिल क्यूँ बता नहीं देता।
जब जी नहीं सकता तू मेरे बग़ैर
पास अपने क्यूँ बुला नहीं लेता।
बंदिशे जब नहीं पसंद हैं ख़ुद पर
क़ैद से पंछी क्यूँ उड़ा नहीं देता।
जग परेशाँ कि "दीपक " अपनी
आँख के आंसू क्यूँ गिरा नहीं देता।
* डॉ. दीपक शर्मा *
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY