Deepak Sharma
आईना भी कहाँ कब सच बता पाया है
दायाँ देखा है तो बायाँ नज़र आया है।
है ग़लतफ़हमी तेरा रसूख़ तुझे बचा लेगा
याद रखना कि ग़रीबों का एक सरमाया है।
खुशी में छोड़ दिये तूने जो सब रिश्ते बशर
ये वक़्त बतायेगा क्या खोया क्या पाया है।
कोई भी शख़्स नहीं ऐसा जिसे दरकार नहीं
किसी ने हाथ तो दामन किसी ने फैलाया है।
मेरा वज़ूद है क्या,ये सबको ही पता होता है
ज़ीरो ने हीरो सदा ख़ुद को ही दिखलाया है।
आदमी खुश है बनाकर बड़े मंदिर मज़्ज़िद
लेकिन वो भूल गया कि वो कहाँ से आया है।
ग़ज़ल चुराकर "दीपक" की शायर बनने वाले
क़लम के साथ तुमने ख़ुद को भी लजवाया है।
@ दीपक शर्मा
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