Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बहुत टूटा , बहुत संभला सांचे मे ढल नहीं पाया

 
बहुत टूटा , बहुत संभला सांचे मे ढल नहीं पाया
समुंदर मे भी दलदल थी किनारा मिल नहीं पाया ।

चिराग़ों की तरह जलना नहीं है सबकी किस्मत में
सूरज ने लाख चाहा पर दीये सा जल नहीं पाया।

नीयत  इंसान  का  गहना ,ज़ेवर  ईमान  होता है  
फ़क़त ग़ैरत वो सोना है जो कभी गल नही पाया।

हवस के दरिया में  पानी से  ज़्यादा गहरी काई है
जो एक बार फिसला वो कभी संभल नहीं पाया।

सच्ची कोशिश कभी ज़ाया नहीं होती कोई 'दीपक'
ये बात और है मेहनत के जितना फल नहीं पाया ।

दीपक पढ़के ग़ज़ल तेरी लूटीं कई शायरों ने महफ़िल 
हमने  उनके  कलामों  में   ज़रा भी असल नहीं पाया।

* डॉ दीपक शर्मा *

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