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अंतर्मन की यात्रा समीक्षा

 



अंतर्मन की यात्राA person wearing sunglasses and a jacket

Description automatically generatedसंजू शरण


 "भीतर से मैं कितनी खाली" काव्य संग्रह में देवी नागरानी ने मानव मन के भीतर की तड़प को, बैचेनी को उकेरने का प्रयास करने की कोशिश की हैं, सच इंसान ऊपर से सहज दिखता है पर अंदर से कितना खोखला होता है, उसके अंतर्मन में कितनी वेदनाएं होती है ये वही व्यक्ति समझ सकता है. जिसने जो ज़िन्दगी के उतार चढाव की पगडंडियों से होकर गुज़ारा होगा. इस सदी के सबसे बड़ी त्रासदी कोरोना जिसे हर व्यक्ति बच्चे ने झेला, डर, अनजानी आशंका,मौत के भय से रोज तिल तिल कर जीना, दूसरों की पीड़ा दर्द में अपनी पीड़ा देखना, और इन विकट परिस्थितियों में खुद को सयंत करके कविता का सृजन करना काबिले तारीफ़ की बात है, जिसके लिए प्रख्यात कवियत्री आदरणीय देवी नागरानी जी को सैल्यूट करती हूं, वैसे भी मुझे इनकी बहुत सी रचनाओं को पढ़ने का मौका मिला है, उनकी रचनाओं में मुझे कभी यशपाल कपूर जी की झलक आती है तो कभी अमृता प्रीतम जी की, बंटवारे का दंश झेलने से लेकर सिंध से हिन्द का सफ़र सच उन्होने जीवन के हर रूप को देखा है, सहा है जो उनकी कहानी संग्रह परछाइयों के जंगल में देखने को मिला है।
 विभिन्न भाषाओं की ज्ञात्री देवी नागरानी जी ने अपने लेखनी के माध्यम से समाज को बहुत कुछ दिया है। "भीतर से मैं कितनी खाली कविता में जीवन के हर पहलू को दर्शाया गया है। इस काव्य संग्रह की सभी कविताएं अपने आप में अनमोल मोती की तरह है जो लोगों को सीख देती है। कुछ कविताएं मेरे रूह को छू गई हैं, जिसमें हैं,  भेदभाव का इतिहास, जेनरेशन गैप, बचपन की साईकिल, नारी मन का रूदाद, नारी की अपनी तलाश, और बंटवारे की टीस।
 चूंकि नागरानी जी ने बंटवारे की पीड़ा झेली हैं तभी तो उनके हृदय की टीस, व्यथा की झलक इस कविता में आईं है। इनकी चंद पंक्तियां प्रस्तुत करती हूं।

 एक नया उजाला,
 अपनी कोख में लिए,
 देखकर आशाओं के खुले आकाश को 
 नज़र क्यों निराश लौट आती है
 सोचती हूँ

क्यों धरती बंट गई है
 आदमी बंट गया है
 क्यों यह आसमां,
 टुकड़ों टुकड़ों में नहीं बंटा. 
 सच बंटवारे की पीड़ा होती ही ऐसी है जिस वतन में जन्म लिए उसी को बांट दिया गया, पर देश बंटने से क्या यादें मिट जाती है आसमान तो वही है पर लोगो की सोच बदल जाती है।  भीतर से मैं कितनी खाली शीर्षक कविता की कुछ पंक्तियां मेरे हृदय को छुए हैं।

 "सब कुछ है मेरे पास
 उस रब का दिया हुआ
 बहुत कुछ नहीं फिर भी सब कुछ
 जिसकी मुझे जरूरत है
................
..............
...............
 फ़िर ना जाने क्यों
 कभी कभी सोंचों में गुम रहती हूं....
......
 सच हर कविता को लिखने के पहले उन्होने अपने हृदय का मंथन किया जो दर्द को महसूस किया उसे शब्दों में पिरों कर हम सब के सामने प्रस्तुत किया, कवियत्री की पीड़ा में लोगों की पीड़ा नजर आईं।
 नारी मन की व्यथा,  बचपन की यादों की तीखी,  खट्टी मीठी यादों को बचपन की साईकिल की कविता में लिख डाली।
 देवी जी लेखनी हर विषय पर चल पड़ती है सामयिक हो या महिला की दर्द से जुड़ी या सुबह की प्रथम किरण की बात को लेकर हो.  रात भले ही निराशा से भरी हो पर मन कहता है उम्मीद की किरण अवश्य प्रस्फुटित होगी जिसे इन्होने अपनी कविता में बहुत ही सुन्दर ढंग से लिखा है।
 “भीतर से मैं कितनी खाली” काव्य संग्रह टूटते बिखरते हुए जन मानस के हृदय को अवश्य नया  स्पंदन देगी, उन्हें विकट परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता देगी।
 जिन्होंने ने भी कोरॉना महामारी को झेला उनकी सहन शक्ति बढ़ गई तभी तो देवी जी ने इतनी बेहतरीन काव्य संग्रह से कविता प्रेमियों को कविता का रसास्वाद करवाया जिसमें विष भी है जीवन रूपी अमृत भी है।
 अंत में यही कहना चाहूंगी की ये संग्रह आने वाले कल में मील का पत्थर साबित हो और ईश्वर करे इसी तरह काव्य के नौ रसों का पान देवी जी हमें करवाती रहें....
 जय हिन्द 
 संजू शरण
 पटना बिहार

Flat no-2 -E 
 Nishtha residency.
 Aanandpuri 120/B
 West boring canal road, Patna

(भीतर से मैं कितनी खाली)



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