कलमकारा
देवी नागरानी जी की कहानियाँ
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‘ मैं बडी हो गई” कहानी की लेखिका सिंधी साहित्य की ज्येष्ठ सिद्धहस्त देवी नागरानी जी कवयित्री ,शायर , गज़लकार, और संवेदनशाली लेखिका के रूप से पहचानी जाती है। यह पुस्तक सिंधी के श्रेष्ठ कहानीकारों की चुनिंदा कहानियों का संग्रह है , जिस में कुल इक्कीस कहानियाँ हैं। इनमें से छह कहानियाँ देवी नागरानी जी की हैं। मानवी भाव भावनाओं का सभी इन कहानियों में मानवी मूल्यों का सहज दर्शन होता है।
मैने अपना दर्द कागज पर उतारा है। वह दुख दर्द सिर्फ मेरा नहीं है , वह मेरी जैसी अनेक बदनसीब लडकियों का है , जिनका बचपन रोटी के दो टुकडों की जुगाड में झुलस गया।
देवी नागरानी जी की जन्मभूमी कराची। अविभक्त भारत का एक मशहूर शहर। हिंदुस्तान का बँटवाराएक अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण घटना रही। अपनी ज़र ज़मीन जायदाद सब छोडकर उसे गंगार्पण कर ये लोग अपनी जान हथेली पर रख कर भारत आए, जहाँ पैर रखने भर को ईंच भर ज़मीन मिली। उस ज़मीन पर खुले आकाश तले इन्होंने पनाह ली। श्रम इनकी पूँजी थी।रात दिन परिश्रम कर दो जून की रोटी पाने। महाराष्ट्र में पुणे , मुंबई ,सातारा , सांगली ,कोल्हापूर, राजस्थान में जयपूर ,जोधपूर , बिकानेर, अलवर, गुजरात में अहमदाबाद , राजकोट , सूरत , भडूच आदि प्रमुख शहरों में बस गए। यहाँ के व्यापार, उद्योग, व्यवसाय बढाने में, उसे व्रृद्धिंगत करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ये सच्चे अर्थ में शरणार्थी नहीं, पुरुषार्थी रहे हैं।
साहित्य, संगीत, कला, न्रृत्य, चित्रकारी, स्थापत्य की सम्रृद्ध परंपरा के पोषक संवर्द्धक सिंधी निवासियों ने अपनी मातृभूमी से कट जाने से, उससे अलग हो जाने के निज के गम को भुलाने के लिए शब्दों का साथ पकडा, कलम हाथ में पकडी, कविता कहानी उपन्यास ,नाटक, गीत , भजन लिख कर , गा कर अपने को रिझाते रहे।
सिंधी बांधवों द्वारा रचित साहित्य सम्रृद्ध है।
देवी नागरानी जी लिखती हैं ---
पडाव तो बहुत आए गए लाख राह में
खेमे कभी भी हमने लगाए नहीं कभी
इक्कीस कहानियाँ याने मानवी मन के विविध भावों, अनेक रंगों के लाल ,पीले , नीले, हरे ,चमकीले, आकर्षक, लुभावने ,छोटे, बडे मोतियों की यह मणिमाला है।
फातिमा हसन जैसा कहती हैं ,
' दुख कुछ रूह में उतर गए ,
कुछ जिस्म सह गए ।'
उसी प्रकार प्रेम, राग, अनुराग, लोभ, ईर्षा, मत्सर, पश्चाताप , बदला लेना, अनेक रूप और छटाएँ , इंद्रधनुषी रंग की ये कहानियाँ हैं। आखिर जीने का मकसद क्या है ? आदमी आदमी के साथ बर्ताव कैसा करे ? इन्सानियत इन्सान को कितना बनाती है , किना बिगाडती है, हमदर्दी का नापतौल क्या ? इन सबका
सच्चा सच्चा, खरा खरा रूप इस संग्रह की कहानियाँ हैं।
' ज़रूरत कहाँ पडती है अश्कों को भी कहने की
मुहब्बत के वे एहसासात छुप कर भी नहीं छुपते।'
इस कथासंग्रह की कहानी , ' स्पर्श ' मन की सभी भावनाओं को झिंझोड देती है। एक मासूम बच्चा, लाल लाल गाल, घुंघराले काले छोटे छोटे बाल , गोल गोल आँखें , उसके आँसू उसके मन को उजागर कर देते हैं। वह औरत अपने आप को काबू में नहीं रख पाती। उसके गाल चूम लेती है और दूसरे ही क्षण में सचेत हो जाती है। हाय रे हाय, यह मैंने क्या कर
दिया ? उस अछूत बालक को चूम लिया ?
' स्फोट ' नामक कहानी में नागरानी जी की चौकस नज़र वहीं ठहर जाती है ,जहाँ दस साल की बच्ची एक खूसट बुड्ढे के साथ ब्याह दी जाती है, पक्का खूँटा है।
नागरानी जी कहती है --जले हैं दिल ,जले हैं घर ,
फकत अब राख ही बाकी है।
कहाँ तक आग फैली है
ये दुनिया को बताएँगे
माँ के लिए मोहब्बत है और खसम के लिए सबकुछ सहना है, ज़बान पर ताला , जलते रहे जब तक राख न हो जाएँ , दूसरी ओर पुरूषप्रधान संस्कृति में पुरुष
का अपना अहं है। पहली औरत की राख ठंडी भी न हुई थी, कि वह मनचला दूसरी ब्याह कर घर में ले आया। अपनी लडकी से उमर में दो साल छोटी और लडकी उसे 'माँ ' कहे की जबरदस्ती ! " मेरा कहा तो तुझे मानना ही होगा " । उस बच्ची पर क्या गुजरी होगी है वह कौन जानता है ? उसके दर्द का बयान कौन करे ?
' एक रात पैंतिस दिन' , ' निर्वस्त्र' , 'वसियत ' ऐसीकहानियाँ हैं, जिनमें औरत का जीना याने हर पल आग में जलना मरना, मर मर कर जी उठना, न मरने की अन्नहीन कहानी है। औरत फंरा बास, उसकी कीमत तीन कौडी की।
' गिरना ही बन गई हो,जब बिजलियों की आदत
तो आशियाँ भी कोई कैसे रहे सलामत '
इक्कीस कहानियों का यह संग्रह मराठी पाठकों को अवश्य ही पसंद आएगा , इस आशा और विश्वास के साथ मैंने प्रस्तुत किया है।
---डा. स्नेहल. तावरे
सेवानिव्रृत्त प्राध्यापक ,पुणे विद्यापीठ.
प्रकाशक, स्नेहवर्धन प्रकाशन, पुणे
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