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Dr. Srimati Tara Singh
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भीतर से मैं कितनी खाली समीक्षा

 


बहुआयामी व्यक्तित्व की व्यासंगी साहित्यिकारा देवी नागरानी डॉ. स्नेहल तावरे

स्वतंत्रतापूर्व काल में जन्मी, सच्चा भारतीयत्व संजोनेवाली, अनेक भाषाओं पर प्रभुत्व रखनेवाली, साहित्य के साथ ही गणित जैसे विषय में पदवी प्राप्त करनेवाली और साहित्य शारदा की अविरत सेवा करनेवाली देवी नागरानी का जन्म 11 मई सन 1941 में कराची में हुआ । उस समय कराची भारत में था । मुंबई आने पर उन्होंने बी.ए. की पदवी प्राप्त की । विवाह पश्चात वे अमरिका में न्यू जर्सी गईं । वहाँ उन्होंने जीवन भर भाषा अध्यापन का कार्य किया और शिक्षा क्षेत्रसे अवकाश प्राप्त किया । उनका स्थायीभाव सदा कार्यमग्न रहने का होने के कारण उन्होंने लेखन कार्य का श्रीगणेश किया और देखते ही देखते उन्हों ने अनेकविध प्रकार की जो साहित्यनिर्मिती की वह सभी के लिए केवल आश्चर्यकारक है । उनके लेखन का आयाम दिन-ब-दिन वर्धित होता हुआ दिखाई देता है, जिस का मूलभूत कारण उनका सात भाषाओं के गहरे ज्ञान में है। इन सभी भाषाओं पर उन का प्रभुत्व रहने के कारण साहित्य क्षेत्र में उन के किए भिन्न प्रयोग से उनकी साहित्य विषय में गहरा ज्ञान और भाषा का ज्ञान प्रकट करने वाले हैं । आज भी उम‘ के अस्सी वर्ष पार करने पश्चात भी उनका उत्साह प्रेरणादायक है । हम देख पाते हैं, कि जीवन में जो भी समय मिलता है, उसका सदुपयोग कर उन्होंने साहित्य निर्माण के लिए किया है । उन की साहित्य निर्मिती की यात्रा का आरंभ सन 2007 में हुआ दिखाई देता है । चौदह साल पहले याने कि उम‘ के छियासठ वें वर्ष में ‘गम में भीगी खुशी’ नाम सिन्धी गज़ल संग‘ह प्रकाशित हुआ और फिर उन्हों ने कभी पीछे मुड कर नहीं देखा । आज तक उन के कुल नौ सिंधी कथाओं एवं काव्य संग्रहों का प्रकाशन हो चुका है ।

सिंधी भाषा के साथ ही उन्होंने हिंदी में भी कथाएँ, कविता, ललित और गज़ल जैसे साहित्य प्रकार में उनकी बारह किताबें प्रकाशित हुईं  हैं । ‘The Journey” नाम का अंग्रेजी का काव्य संग‘ह सन 2009 में प्रकाशित हुआ, एवं ‘रिंगिंग रेडिएंस’ सन 2021 में ज़ाहिर हुआ है.  साहित्य के महिमार्ग पर चलते हुए उन्होंने हिंदी से सिंधी में अनुवाद भी किए । इस तरह की उनकी बारह किताबें हैं । और खास बात यह है, कि भारत के प्रधानमंत्री श्री. नरेन्द्र मोदीजी के हिंदी काव्य ‘आंख ये धन्य है’ का भी सिंधी में अनुवाद किया गया है । उसी तरह उन्होंने सिंधी के उत्तम साहित्य का भी हिंदी में अनुवादित किया है । ऐसी कुल तेरह किताबें हैं, जिन में भी काफी विविधता दिखाई पड़ती है । उन किताबों की गिनती भी काफी हैं, जो कि उनकी लिखी किताबों के भी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं । खास तौर पर उनकी कथा साहित्य का मराठी, पंजाबी, उर्दू, तेलुगु, तमिल, मल्यालम् और अंग्रेजी जैसी सात भाषाओं में प्रकाशित होने का सम्मान उन्हें प्राप्त है । देवी नागरानी जी की विशेषतापूर्ण तथा भाषा बंधन से परे साहित्य संपदा उनकी एक असामान्य कारीगरी है, जिस के कारण उन्हें भिन्न भिन्न राष्ट्रीय तथा आंतराष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार प्राप्त हुआ हैं । ये सभी सन 2007 और 2021 के बीच सतत प्राप्त होते रहे हैं, जो गिनने बैठने पर दो पन्ने भर जाएंगे । इससे यह साबित होता है, कि उनके लेखन के आरंभ के साथ ही पुरस्कार भी चलकर आते गए, जो बात सचमुच एक गर्व की बात है । इतना ही नहीं, उन के साहित्य पर एम. फिल. और पीएच. डी. भी की गईं हैं । देवी नागरानी जैसी बहुआयामी बुद्धि धारी से मेरी गहरी दोस्ती कैसे बनी मुझे पता ही न चला ! बहुत ही प्यारा और प्यार करने वाला व्यक्तित्व रखनेवाली देवी नागरानी की कुछ किताबें प्रकाशित करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त है । सिंधी, हिंदी भाषाओं का संगम बना उनका ‘भीतर से मैं कितनी खाली’ नाम का संग्रह ‘स्नेहवर्धन प्रकाशन’ की ओर से 26 जनवरी 2023, के दिन प्रकाशित हो रहा है, जिसके लिए मैं विशेष रूप से आनंदित हूँ । रसिक पाठकों को ‘भीतर से मैं कितनी खाली’ सिंधी-हिंदी काव्य की तर्जुमानी के रूप में एक अक्षर दावत मिल रही है। स्वरूप सौंदर्य तथा बुद्धिमत्ता का जे़वर प्राप्त मेरी ज्येष्ठ सहेली देवी नागरानी की शताब्दी मनाने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हो, यही शुभकामना प्रकट करते हुए और इस अवसर पर उन से अधिकाधिक साहित्य निर्मिती की शुभकामना करती हूँ ।

डॉ.स्नेहल तावरे

प्रकाशक: स्नेह्वेर्धन प्रकाशन, डॉ.एल.वी. तावरे, 

८६३ सदाशिव पेठ, महात्मा फुले

सभाग्रहमागे, पुणे ४११०३०

संवाद 9423643131

(भीतर से मैं कितनी खाली)


5-भीतर से मैं कितनी खाली 


सब कुछ है मेरे पास 

उस रब का दिया हुआ  

बहुत कुछ नहीं, फिर भी सबकुछ

जिसकी मुझे ज़रुरत है

घर, गाड़ी, नौकर-चाकर, व्यापार, कर्मचारी

भीड़ रहती है आए दिन मेरे आस-पास

मेरे घर में 

कोई न कोई उत्सव रोज़ मनाया जाता है

जब चार दोस्त, व् उनकी बीवियाँ  

आकर जमघट मचाती हैं 

मेरे दफ्तर के कर्मचारी

आते जाते सलाम करते हैं

फिर भी न जाने क्यों 

कभी कभी सोचों में गुम रहती हूँ

खुद में खोई रहती हूँ

कभी अपनी गर्दन, कभी अपना हाथ हिला देती हूँ 

उसका अर्थ क्या है मुझे भी नहीं पता

उनकी ओर देख कभी मुस्कुरा भी देती हूँ  

कभी एक आधा ठहाका भी लगा लेती हूँ

पर जाने क्यों, 

अपना ही लगाया हुआ ठहाका

कितना अजनबी सा लगता है मुझे-

लगता है कोई झुनझुना बज रहा हो

जिसके भीतर से आती आवाज़ से मैं अनजान हूँ

भरपूर जहान में  घर भरा हुआ, जेबें भरी हुईं

फिर भी क्यों कहीं न कहीं

कोई कमी है, कुछ खालीपन है 

जब मैं  पल दो पल खुद से मिल कर बैठती हूँ 

अपने विचरों को अभिव्यक्त करने की इच्छा को रौंदकर

खुद की बेलगाम चाहतों पर अंकुश लगाकर

मैं वह पल जीती हूँ

तो आभास होता है मुझे

परिचित होती हूँ इस सच से 

मैं सम्पूर्ण बाह्य रूप से  

भीतर से मैं कितनी खाली.

21 दिसंबर, 2020 


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