Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

गर्जना

 

गर्जना 

लेखकः मोहन कल्पना 

ओहदे का नशा अच्छे भले को मंझदार में धकेल देता है, फिर भला माणिक लाल किस खेत की मूली था. बिच्चारा ३२ साल क्लर्क की हैसियत से काम करते बेज़ार हो गया था. मैनेजमेंट मेम्बेर्स के आगे हाथ जोड़ना, अपने बस में जितनी सेवा करने की क्षमता थी वो करके, अच्छे काम करने के वादे करके किसी तरह सुपेर्विजर की कुर्सी हाथ की. उसके पक्के होने की बात तक बाहर न आने दी और न ही कर्मचारियों को भी कुछ पता चलने दिया.
 जब बात पक्की हुई तो ऐलान हुआ, पार्टियां दीं, कुछ कर्मचारियों को अपना दायाँ और बायाँ हाथ चुना. माणिक लाल बहुत खुश था. उसका असली रंग भी दिखाई देने लगा. उसका शकी स्वाभाव, हर काम से नुख्स निकलना, थोड़ी ग़लती पर कर्मचारियों को बुलाकर उनपर कुर्सी का रौब जमाना, मतलब यह कि उसने तंग करने के तरीके अख्तियार कर लिए। शोर करने वाले सब शेर तो नहीं हो सकते , पर बचाव के रास्ते तंग होने लगे. एक गुफा में इतनी आवाजें ! किसकी आवाज़ सुनी जाय? 

गर्जना की आवाज़ बढ़ रही थी. देखें आगे आगे होता है क्या?

Devi Nangrani- 


Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ