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जीवन के पहलू समीक्षा

 

पुस्तक-समीक्षा


 जीवन के पहलू- प्रेरणादायक पक्ष

“वर्तमान समाज के परिदृश्य एवं नारी पीड़ा की प्रभावशाली अभिव्यक्ति है देवीजी के कहानी व काव्य संग्रह” -    

                                          - वीरेन्द्र काजवे     “सहितेन स:  भाव: साहित्यम” अर्थात जो सत्य है सनातन है वही साहित्य है। इसी भाव से लेखिका नागरानी देवीजी ने वर्तमान समाज के परिदृश्य को बिना किसी लटकाव-भटकाव के अपनी काव्य कृति में सरल-सहज भाषा में प्रभावशाली शैली में अभिव्यक्त किया है। हाल ही में लेखिका की दो नयी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, एक “माँ ने कहा था” जो काव्य संग्रह है तथा दुसरा “जीवन के पहलू” कहानी संग्रह। जिसमें देवीजी ने छोटे-छोटे प्रसंगों के माध्यम से अनेक ऐतिहासिक प्रसंगों व घटनाओं को आधार बनाकर बहुत ही सहजता के साथ अपनी बात रखी है। 

नागरानी देवीजी के इन दोनों नवीन कहानी व काव्य संग्रह में उनके अपने दीर्घ जीवन के यथार्थ अनुभव तो हैं ही साथ ही अभिव्यक्ति की शैली भी अनुठी है। देवजी की शैली सबरंग है वहीं भाषा भी सीधी सहज और सरल मार्ग पर चलती है जो सीधे पाठक के हृदय को स्पर्श करती है। कहीं नारी जगत की पीड़ा तो कहीं समाज के दूषित रूप पर क्षोभ और संवेदना है। लेखिका अपनी दार्शनिक अभिव्यक्ति करते हुए “रजा में राजी” शीर्षक प्रसंग में कहती है कि जो नाश हो जाता है वह हमारा था ही नहीं। जो राहत राह में नहीं मिलती उस मुकाम पर मिलती है जहाँ कुछ और पाने की लालसा खत्म हो जाती है। “दु:ख-दर्द” शीर्षक प्रसंग में लेखिका जब अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करती है तो “मैं नीर भरी दुःख की बदली” काव्य की रचना करने वाली व आधुनिक युग की “मीरा” कही जाने वाली महादेवी वर्मा के अधिक निकट पहुँच जाती हैं। जब वह “खुशियाँ” शीर्षक में लिखती हैं कि – रिश्तों के जाल में उलझे हम अपने पर कम औरों पर ज्यादा ध्यान देते हैं। खुशियाँ कुछ और नहीं अपने मन से उपजी हुई किरणों की रोशनी है तब वह रामदरस मिश्र के संसमरण “छोटे-छोटे सुख के अधिक निकट पहुँचती हुई नजर आती है किंतु भाव अभिव्यक्ति में लेखिका की एक अपनी छवि दृष्टिगत होती है। नारी अबला या सबला हो सकती है किंतु नारी का एक और रूप भी है जिसे देवीजी ने प्रकट किया है और वह है “पीड़ा की प्रतिमा” नारी परपीड़ा और स्व पीड़ा को अपने अनंत हृदयाकाश में समेटे होती है। नारी का यह रूप लेखिका की मौलिक एवं अनुठी प्रस्तुति है नारी पीड़ा की पराकाष्ठा प्रसव पीड़ा है जिसकी परिणिति एक नये संसार को जन्म देती है। किसी पर्वत के हृदय में अग्नि प्रज्ज्वलित होती है तब वह विकराल रूप धारण कर पर्वत हृदय को चीर कर फट पड़ती है तथा लावा बनकर आसपास की भूमि को अपने आगोश में ले लेती है और जब लावा शीतल होने लगता है तब उस भूमि को उर्वर बना देता है नारी पीड़ा भी कुछ ऐसी ही है, जब उसका हृदय भी पीड़ा के बीज को अपने अंक में दबाता है और वही बीज जब प्रसव पीड़ा में फट पड़ता है तब वह ममत्व, ममता स्नेह और वत्सल की अनेक रसधार बहा देता है, इसीलिए तो जयशंकर प्रसाद ने अपने महाकाव्य “कामायनी” में नारी को केवल श्रद्धा कहा है- “नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत के नगतल में, पियुष स्त्रोत सी बहा करो जीवन के सुंदर समतल में”। मीरा ने भी “घायल की गति घायल जाने” ऐसे ही नहीं कहा है। ऐतिहासिक घटनाओं पर गद्य-काव्य रचने वाले रघुवीर सिंह ने यशोधरा की पीर को अनुभव करते हुए उसे नीलकण्ठ महादेव से भी ऊँचा बताते हुए पति वियोग कि विष पीने वाली को नीलकण्ठा कह दिया जिसने अपने पति गौतम(जो बाद में भगवान बुद्ध कहलाए) की वियोग पीड़ा को अकेले ही सहा था, सीता को तो पति वियोग के बाद राम की प्राप्ति भी हुई थी, किंतु यशोधरा को गौतम पति रूप में कभी भी प्राप्त नहीं हुए। सामने आये भी तो एक भिक्षुक बनकर और भिक्षा में यशोधरा से चिर-वियोग की भीख माँगकर ले गये। “हरि अनंत हरि कथा अनंता” नारी हृदय इसी पृष्ठभूमि पर निर्मित है। लेखिका का काव्य संग्रह “माँ ने कहा था” व कहानी संग्रह “जीवन के पहलू” में जीवन के यथार्थवादी अनुभव के चित्र उभरकर सामने आए हैं। नारी अपने एक ही जीवन में माँ, बेटी, बहिन व पत्नी के सारे किरदार एक ही बार में निभा देती है। पुत्र की मृत्यु पर पुत्र का शीश उसकी गोद में होता है, भाई की मृत्यु पर उसकी बहें पकड़कर विलाप करती है और पति की मृत्यु होने पर वह उसके चरणों से लिपटकर विलाप करती है। यही नारी का अद्भ़ूत दैवीय और महान रूप है, इसके बाद भी पुरुष नारी को भोग व मनोरंजन का साधन मात्र समझता है उसके देहिक सौन्दर्य से आगे बढ़कर उसके विशाल ह्रदय के ममत्व,स्नेह और वात्सल्य को नहीं देख पाता है यही कारण है कि वह कभी हवस की शिकार बनती है, तो कभी एक उपेक्षित वस्तु। देवी नागरानी जी ने अपने गद्य व काव्य संग्रह में भिन्न-भिन्न शीर्षकों मे नारी के वर्तमान भिन्न-भिन्न रूप व उसकी असह्य पीड़ा को मूर्त रुप दिया है। कल के सच को आज की कसौटी पर कसकर परखने में भी लेखिका ने सफलता प्राप्त की है और निष्कर्ष रूप में इसे एक अहसास कहा है, जो किसी प्रमाण का मोहताज नहीं होता वही नीलकंठ शीर्षक कविता में समाज के विषैलेपन की तस्वीर उभारी है और कहा है कि हम सब इस 

विष को ग्रहण करनेवाले नीलकण्ठी हैं। वहीं काला उजाला, याद के पन्ने, दौलत, मुहब्बत जैसे शीर्षकों से लेखिका ने समाज के सच को सामने लाने में सफलता प्राप्त की है तो दूसरी ओर इतिहास की छोटी-छोटी घटनाओं व प्रसंगों के माध्यंम से अपनी भावाव्यक्ति की है। 

समीक्षक- वीरेंद्र कजवे, 351, गंगा निकेतन, देवास, मध्यप्रदेश

संग्रह: जीवन के पहलू, लेखिका-देवी नागरानी वर्ष: २०१९, मूल्य: रु. २४०,  पन्ने: १०४, प्रकाशक: स्नेह्वेर्धन प्रकाशन, डॉ.एल.वी. तावरे, ८६३ सदाशिव पेठ, महात्मा फुले सभाग्रहमागे, पुणे ४११०३० , 


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