संस्मरण
जीवन संबंधी घटनाओं का ऐतिहासिक उल्लेख –बलशौरि रेड्डी -देवी नागरानीयादों के गलियारे से गुज़रते हुए मन परिंदा जब अंधेरे में रोशनी को पाने के लिए टटोलता है तो किसी एक खास स्थान या किसी खास व्यक्ति का स्मरण करता है और उस गलियारे की भूल भुलैया में एक सुरंग सी बनाता चला जाता है, जहां पर अंधेरे का अंत होता है, और रोशनी का आगाज़। श्री –बलशौरि रेड्डी जैसे पारसमणि महापुरुष सौभाग्य वश ही संपर्क में आते हैं, और यह मौका मुझे न्यू यार्क में मिला, जहां उनके साथ तीन दिनों के परस्पर मुलाक़ात एक सुखद यादगार बन कर रह गई। यह मेरे लिए कठिन ज़रूर है कि श्री बलशौरी रेड्डी जैसे विराट व्यक्तित्व पर कुछ कहूँ, और लिखना तो मेरे सामर्थ्य के बाहर है। पर साथ गुजरे हुए पल जब यादों में उमड़ आये हैं तो मनोभावों को अभिव्यक्त करने की कोशिश में संचार आ ही जाता है॥
जुलाई, १३, १४, १५ 2007 - न्यू यार्क : ८वें विश्व हिंदी सम्मेलन के शिखर पर एक सुन्हरा दरवाज़ा UNO में भारतवासियों के लिये खुला है, उसका इतिहास गवाह है. यहाँ गाँधी जी का कथन सत्य बनकर सामने आया “अपने दरवाज़े खुले रखो, विकास अंदर आएगा” । न्यू यॉर्क की सरजमीं ने मुझे श्री बालशौरि रेड्डी जी के साथ मुलाक़ात का अवसर प्रदान किया, और उस रौशन याद के जुगुनू मेरे ज़हन में उजाले भरने लगे। तीन दिवस के उस साहित्यिक महायज्ञ में पहले दिन खाने के समय डायनिंग हाल में श्री बलशौरि रेड्डी जी से मेरी पहली मुलाक़ात हुई, जहाँ लावण्या शाह (पंडित नरेंद्र जी की सुपुत्री), रजनी भार्गव भी मेरे साथ बैठी हुईं थीं। डॉ॰ बाल शौरि रेड्डी, उनकी पत्नि और विशाखापटनम से आई प्रोफेसर डॉ॰ षेक्षारत्नम (हिन्दी साहित्य किरण की अध्यक्ष) हमारे साथ ही बैठ गए। पहले मुस्कान का, फिर नामों का आदान प्रदान हुआ और सिलसिला आगे बढ़ा परिचय का, वार्तालाप का और फिर सोच-विचार का। जब बातों-बातों में रेड्डी जी ने बताया कि वे आंध्राप्रदेश से आए हैं तो मेरी जज़्बात कुछ हरी हो गई । मैं भी आंध्रा प्रदेश की पली-बड़ी, वहाँ स्कूल में तेलुगू दूसरी भाषा के तौर पढ़ी थी। मैंने तुरंत उनकी ओर देखते हुए कहा -“मीरू एटला उनाऊ सर ?’ (हाउ आर यू सर?), यह सुनते ही वे बहुत खुश हुए कि मैं एक सिन्धी भाषी होते हुए अमेरिका में बैठी अपनी प्रांतीय भाषा में बतिया रही हूँ। यह था उनसे मेरा पहला परिचय!! किसी भी भाषा का साहित्य, चाहे वह हिन्दी हो, या तेलुगू, सिंधी हो या भोजपुरी, उस भाषा का वैभव है, उस भाषा का सौंदर्य है. हिंदी केवल भाषा नहीं, हमारी राष्ट्रभाषा है, हमारी पहचान है, बहती गंगा है, मधुर वाणी है. उसका विकास हमारे भारत देश हर देश की तरक्की, मान सन्मान के साथ जुड़ा हुआ है। डॉ॰ बालशौरि रेड्डी बहुआयामी व्यक्तित्व के मालिक है, उनका हिन्दी भाषा के साथ लगाव और प्रेम उनकी बातों से झलकता है। सरलतम संवाद-सरल हिन्दी भाषा, लेकिन विचारों में पुख्तगी और सोच एक दशा और दिशा दर्शाती हुई। कहीं कोई दो राय नहीं जब वे कहते हैं -"हिंदी भाषा नहीं है, एक प्रतीक है, भारत की पहचान है” विदेश में हिंदी को बढावा मिल रहा है, यह वहाँ पर बसे प्रवासी भारतियों की मेहनत का नतीजा है. अनेक भाषाओं के आदान-प्रदान से हमारी संस्कृति पहचानी जाती है. देश की तरक्की उस की भाषा से जुड़ी हुई होती है. इसमें बड़ा हाथ साहित्यकारों, लेखकों, संपादकों और मीडिया का है. हिंदी भाषा जो हमारे साहित्यक, सामाजिक, और संस्कृतिक कार्यों का माध्यम है और वही अब एकता को दृढ़ करने लगी है. भारत की आवाज़ आज अंतराष्ट्रीय स्तर पर सुनी जा रही है उसे सँपर्क की भाषा बनाने पर भी ज़ोर दिया गया.
तिरँगा भारत की आज़ादी का प्रतीक है. जिन लोगों ने आज़ादी दिलाई, उन लोगों को याद रखना उन्हें श्रन्धंजली अर्पित करने के सम्मान है। उसी के संदर्भ में हम उन शूरवीरों को, देश की मात्र भाषा को और माता के स्थान को नहीं भूल सकेंगे. सयुंक्त राष्ट्र संघ में हिंदी की अध्यक्ष डा॰ गिरिजा व्यास ने मंच पर अपने विचार जनता के सामने रखते हुए कहा "हिंदी भाषा जनता की भाषा है, इसका शिक्षण, परिक्षण, शोध, अनुशोध ज़रूरी है. शब्दावली का विस्तार हो शब्द कोष समर्थ हो यही सफलता की सीडी का पहला पड़ाव है।“ इसी भाषा को विश्व मंच पर स्थापित करने का यह अवसर मिला था। इस अवसर पर तीन दिन सिलसिलेवार कई सत्र हुए जहां विद्वान गुणी जनों को सुनने का मौका मिला। नए तत्वों की महत्वता का परिचय मिला, स्वीकारने और अस्वीकार करने के मुद्दे उठे, विचार-विमर्श हुआ, बहस भी हुई। पर एक संयुक्त परिवार की तरह सिलसिला आगे बढ़ा जहां कई महत्वपूर्ण विषय नई और सरल सुगम जानकारी देकर वहाँ उपस्थित साहित्यकारों के शब्दकोष में इजाफा करने में पूर्ण रूप से सहायक रहे। उनमें कुछ विषय इस तरह थेः संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी, देश विदेश में हिंदी शिक्षण, वैश्वी करण, मीडिया और हिंदी, विदेशों में हिंदी स्रजन (प्रवासी हिंदी साहित्य), हिंदी के प्रसार प्रचार में सूचना प्रौध्योगिकी की भूमिका, हिंदी के प्रसार प्रचार में हिंदी फिल्मों की भूमिका, हिंदी युवा पीढी और ज्ञान –विज्ञान, हिंदी भाषा और साहित्यः विविध अयाम, साहित्य में अनुवाद की भूमिका, हिंदी और बाल साहित्यः अध्यक्षः डा॰ बालशौररि रेड्डी, देवनागरी लिपि, राष्ट्रीय एकता का सूत्रः संस्कृतिक अयाम, अनुवाद की समस्याएं , पुस्तक व्यवसायः एक विहंगम द्रुष्टि, पुस्तकों का लोकार्पणः श्री आँनंद शर्मा.!
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