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Dr. Srimati Tara Singh
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साठोतरी हिंदी ग़ज़ल समीक्षा

 

 ग़ज़ल के क्षेत्र में मील का पत्थर है “साठोतरी हिंदी ग़ज़ल" 


"साठोतरी हिंदी ग़ज़ल" शिल्प और संवेदनाः  ग़ज़ल संबंधित सम्पूर्ण विशेष सन्दर्भ: दुष्यंत कुमार पर शोध कार्य प्रस्तुत करने वाली डा. सादिका असलम नवाब 'सहरमुंबई महानगरी की एक जानी मानी गज़लकारा है जो साहित्य से निरंतर जुड़ी रहकर उस क्षेत्र में अपनी पहचान की परिभाषा ख़ुद देती है. उनके द्वारा रचित यह कृति ग़ज़ल के क्षेत्र में मील का पत्थर हैऔर यह कहने में कोई अतिशयोक्ति न होगी की इस ग़ज़ल-संग्रह से जुड़ी हर तकनीक व् ग़ज़ल से जुड़ा ज्ञान एक विशाल भण्डार है. अध्ययनमनन एवं मंथन से ग़ज़ल विधा पर रचा गया एक सन्दर्भ-ग्रन्थ है.   

   अपने इस साहित्य के रचनात्मक विस्तार में सादिका नवाब जी ने यह प्रमाणित किया है की रचना का जन्म सिद्धांतों के वैचारिक आदर्शों से नहीं होता बल्कि रचनाकार की रचनात्मक ऊर्जा की परिधि में जब संवेदना का संचार होता हैतब कहीं जाकर कवि अंदर और बाहर की दुनिया को एक सूत्र में जोड़ पाता है. कवि की रचना सहृदय को अपने दिल की आप बीती लगने लगे तो यह रचना की सबसे बड़ी सफ़लता है और यही सम्प्रेश्रीयता है.

    आगाज़ी प्रस्तावना में सादिका जी लिखती है -" साठोतरी हिंदी गज़लें बुनियादी तौर पर विसंगतियों पर प्रहार करती है. वह आज के भ्रष्ट व्यवस्थाभ्रष्ट राजनीतिकालाबाज़ारीबेरोज़गारीमहंगाईआम आदमी की  वेदनाएंसमस्याएंजीवन संघर्ष से जुड़ी आशा-निराशा सभी के बिम्ब प्रस्तुत करती है. "इसी लहज़े  को खुलासा करते हुए श्री अदम गोंडवी (रामनाथ सिंह) का कथन ज़ाहिर कर रहा है:

"भूख के अहसास को शेरो-सुख़न तक ले चलो

या अदब को मुफ़लिसों की अंजुमन तक ले चलो

खुद को घायल कर रहे हैं गैर के धोखे में लोग

इस अहद को रोशिनी के बाँझपन तक ले चलो."

   साहित्य समाज का प्रतीक है. जो जैसा है वैसा ही दिखाई देता है. आज की कृत्रिम दुनिया में जहाँ झूठ-सच में अंतर मिटता चला जा रहा हैसच का गला घोंटा जा रहा हैदिल-दिमाग़ में तकरार पैदा हो रहा हैवहीँ सामाजिक सरोकारों को एक दशा और दिशा प्रदान करने के लिए क़लमकार का भी दायित्व बढ़ जाता है कि वह समाज की विसंगतियोंकुनीतियोंन्याय-अन्याय के परदे में छिपी हुई कुनीत राजनीतियों कोसकारात्मक जीवन मूल्यों का सर्जन करें और विक्सित करें.

    डॉ. सादिका नवाब ने अपने इस शोध-पूर्ण संग्रह में सच के सामने आइना रखते हुए कहा है कि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में ग़ज़ल तो देखने को मिलती जाती हैमगर समीक्षात्मक लेख नहीं मिलते यह सोचने वाली बात है जिसे दिशा मिलनी चाहिएजो एक तरह से कवि पर दबावनियंत्रण बनाये रखने में सक्षम हो. कविता के माध्यम से कवि का जागरूक रूप पाठक के सामने खुलता है. कविता में विवरण या घटित घटनाओं और दृश्यों के पठन से पाठक का ध्यान समाज में हो रही असंगताओं की ओर खिंचता है और वही उसे व्यक्तिगत से सामाजिक बनने की ओर उन्मुख करता है. यह बात इतनी मुखर है कि पाठकों को भी सहज ही अपने मंतव्य को प्रेषित करने कि प्रेरणा देती है.

   अध्ययनमननऔर मंथन के लिए ज़रूरी हर विषय-वस्तु सादिका जी के इस संकलन में अध्ययन के पहले अध्याय ‘शिल्प और संवेदना’ और तद पश्चात कुलमिलाकर आठ अध्याय में अपनी रचना धर्मिता को मुखरित किया है और वही साहित्य की ओर धर्मनिष्ठा उनकी शख्सियत को एक अनूठी बुलंदी पर पहुंचाती है. अपनी क़लम के बलबूते पर "साठोतरी हिंदी ग़ज़ल" कल्पना से नहीं बल्कि यथार्थ के परों पर परवाज़ करके अपने ख्यालों और ख़्वाबों को लफ़्ज़ों का पैरहन ओढ़ा कर ज़िन्दगी की राहों को रोशन करतीसभी लिखित अध्यायों के माध्यम से ग़ज़ल का हर स्वरुप प्रेषित करने में सफ़ल हुई हैं.

       ग़ज़ल की माँग संवारते और एक बार फिर ग़ज़ल का किला मज़बूत करते हुए सादिका नवाब ने अपने फ़न और उसकी माहिरता से अदब के संजीदा कारीन को अपनी तरफ वतवज्जाह किया है. ग़ज़ल-ज्ञान के अथाह सागर में उनके ही शब्दों में -" ग़ज़ल में शब्द और अर्थजल और जलतरंग के समान कहने में अलग-अलग हैंपरन्तु वास्तव में अभिन्न हैं". ग़ज़ल भी अपने स्वरुप या शिल्प विधान से पहचानी जाती हैशब्दों का रख-रखावकरीने से सजाई गई ईंटों की तरह है 

जो काव्य-भवन के निर्माण में अपना महत्त्व रखते हैं. इसका खुलासा करते हुए सादिका जी ने "ग़ज़ल के शिल्प विधान" उन्वान के अंतर्गत ग़ज़ल की मांगों को उजगार किया है जिसमें ज़रूरी है ज़मीनकाफ़ियारदीफ़रुक्नमिसरा

मतला एवं मक्ता और अंतिम शेर का विवरण उदाहरण समेत दिया है

       सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए "ग़ज़ल का छंद-शास्त्र अथवा उरूज़" अध्याय के अंतर्गत चुने हुए बहरों को सुंदर सरल पठनीय तरीके से मिसाल के तौर पर शेरउसके नीचे उसकी तख्ती और ज़रुरत अनुसार खास टिप्पणी भी पेश की है. बहरों की संक्षिप्त जानकारी में हैं १) बहरे- मुतक़ारिब२) बहरे-मुतदारिक३) बहरे-रमल४) बहरे-रजज़५) बहरे-हजज़६) बहरे-मज़ारे७)  बहरे-कामिल८) बहरे-मुजतस९)बहरे-ख़फीफ़ 

  इस संग्रह में पहले अध्याय से गुज़रते हुए महसूस होता है. जैसे कोई ग़ज़ल पाठशाल में दाखिल हुआ होजहाँ दूर तक कोई मंजिल नज़र नहीं आतीबस तवील सफ़र ही सफ़र सामने है. इस विधा को जानने और पहचानने के लिए मौन साधक बनना पड़ता है जहाँ बैठकर संकेतार्थों की विशेषता और परिधियों के परिवेश से परिचित हुआ जाता है. यहाँ वरिष्ट गज़लकार श्री मधूप शर्मा जी का एक शेर अपनी सार्थक और प्रेणादायक भूमिका निभा रहा है-जितना कहा उससे अधिक का संकेत देता हैजो अनकहा रह गया है वह पाठक समझ लें. उनकी बानगी इस हक़ीक़त को सामने रख पाई है---

ऐ अदीबो! लिखो तो कुछ ऐसा 

आने वालों को शाहकार मिले.

  इसी पाठशाला के कार्यक्रम में सादिका जी ने सरल ढंग से शेर के दोष का विवरणप्रवाह या रवानी का दोषग़ज़ल की विशेषताएं और उनके निर्णायक तत्वउनकी प्रकृति के अनुसार शब्दों को नर्म-नाज़ुकपुरदर्द और हुस्नो-निखार के 

कई हवाले दिए है जहाँ शब्द और अर्थ का पारस्परिक सम्बन्ध होना आवश्यक हैइसी बात की महत्वता पर ज़ोर दिया है.

   समकालीन ग़ज़ल केवल प्रेम की अभिव्यक्ति मात्र न बनकर आम आदमी की ज़िन्दगी की समस्याओं से खुद को जोडती हैसमसामयिक जीवन की जटिलताएं और विसंगतियां कई स्वरुप धारण करके व्यक्त होती है. और इसी प्रयास को सकारात्मक दिशा देने वाली शायरा डा. सादिका नवाब 'सहरका यह संग्रह न फ़कत पठनीय और संग्रहनीय हैबल्कि इस विधा के नवोदित ग़ज़लकारों और शोध-कर्ताओं के लिए मार्गदर्शक भी है.

   अपना उच्चित स्थान व् मुक्काम साहित्य जगत में हासिल करे और ऐसे शोध‍कर्यों के साहित्य से ग़ज़लकारों को मालामाल करती रहें इसी शुभकामना के साथ 

देवी नागरानी९-डीकार्नर व्यू सोसाइटी १५/३३ रोडबांद्रामुंबई ४०००५०  PH:9987928358

संग्रह: साठोतरी हिंदी ग़ज़ललेखिका: सादिका नवाबपन्नेः ४२४मूल्य:रु.५००प्रकाशक: प्रकाशन संस्थान४७१५/२१दयानंद मार्गदरियागंजनई दिल्ली -110002  

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