मूल लेखकः मोहन कल्पना
हिंदी अनुवाद: देवी नागरानी
वचन
आज तीन कुटुंब मंदिर के बाहर मातम मना रहे हैं. कालू और नीतू की लाशें मंदिर के सामने रखी हुई हैं. कल ही तो मोहन और नीतू की शादी हुई थी और आज ही उनके सब अरमान उस आग की लपटों में जल कर राख हो जायेंगे. मोहन बार-बार नीतू के पिता से कहे जा रहा था.. “अंकल दोषी आप हैं जो नीलू की शादी कालू से न करवाकर उसकी ज़िंदगी की डोर मुझसे बांध दी. अगर नीलू मुझे एक बार भी दिल की बात बताती, तो मैं खुद उसकी शादी कालू के साथ करवा देता.
कालू के पिता पर बार बार मूरछा हावी हो रही थी. उसके एक मात्र पुत्र ने नीलू के प्यार में खुद को कुर्बान कर दिया. नीलू और कालू मेडिकल कालेज में साथ पढ़ते रहे और साथ -साथ ज़िंदगी गुज़ारने और साथ जीने मरने के वादे कर बैठे. नीलू के बाप के पास बेशुमार दौलत थी, जिसके बलबूते पर उसने एक उध्योगपति मोहन से अपनी बेटी की शादी करा दी। पर आज नीलू उनसे भी हमेशा के लिये मुँह मोड़कर चली गई. कालू और नीलू ने एक दूसरे को दिया वचन पूरा किया.
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