1
दोहे लिखने को हुआ, मन कितना बे
कैसे सीखूँ यह विधा, कुछ तो कहें जनाब
2
शब्द तराशे सोच को, दे विभिन्न
शिल्पकार अथ शब्द का, कल का दो
3
शब्द बिना प्यासी रही, सोचों की
व्यक्त हुए बिन रह गई, तन्हा और
4
माया से फूले-फले , तन-मन में उ
ओढ़ चदरिया अमल की, अपना करो बचा
5
दुनिया दारी दस्त है, जटिल करे
पर रूहानी राह में, होता है सि
6
गुरबत वह अभिशाप जो, दाने को मो
ढोती है उस बोझ को, जिसमें भरा
7
बिकता है सच आज भी, कौड़ी के ही
आश्रम-आश्रम बिक रहे, कितने सस्
8
तन की भट्ठी में हुआ, कुंदन मन
तन आवा में हो गया, अपना जौहर आ
9
नतमस्तक सुनकर हुई, जिसका गीता
शाम वही पंडित मिला, बदले तेवर,
10
जीवन पथ पर झूठ सच, मिलते है हर
झूठ मिले जब सत्य से, करता उस प
11
राधे-राधे जप रहा, हर युग में घ
कितनी राधा मन बसी, ये तो जाने
12
लेने देने का हुनर, कुछ तो तू भी सीख
फैलाने से हाथ क्या, मिली किसी
13
क्या सुनना है शोर में, गाजा, बा
ख़ामोशी में जो बजे, उसका खोज सु
14
होश कहाँ रहता किसे, जब होती तक़
कैसे कोई बच सके, तेग़ करे जब वा
15
दुल्हन आई सामने, पहने चंदन हार
दर्पण भी शर्मा गया, देख उसे इस
देवी नागरानी
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