Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दोहे लिखने को हुआ

 

1

दोहे लिखने को हुआ, मन कितना बेताब

कैसे सीखूँ यह विधा, कुछ तो कहें जनाब

2

शब्द तराशे सोच को, दे विभिन्न आकार

शिल्पकार अथ  शब्द का, कल का दोहाकार

3      

शब्द बिना प्यासी रही, सोचों की हर आस

व्यक्त हुए बिन रह गई, तन्हा और उदास

4

माया से फूले-फले , तन-मन में उलझाव

ओढ़ चदरिया अमल की, अपना करो बचा

5

दुनिया दारी दस्त है, जटिल करे फैलाव

पर रूहानी राह में, होता है सिमटाव 

6

 

गुरबत वह अभिशाप जो, दाने को मोहताज

ढोती है उस बोझ को, जिसमें भरा अनाज

7

बिकता है सच आज भी, कौड़ी के ही दाम

आश्रम-आश्रम बिक रहे, कितने सस्ते राम

8

तन की भट्ठी में हुआ, कुंदन  मन ले ताप

तन आवा में हो गया, अपना जौहर आ

9

नतमस्तक सुनकर हुई, जिसका गीता पाठ

शाम वही पंडित मिला, बदले तेवर, ठाठ

10

जीवन पथ पर झूठ सच, मिलते है हर बार

झूठ मिले जब सत्य से, करता उस पर वार

11

राधे-राधे जप रहा, हर युग में घनश्याम               

कितनी राधा मन बसी, ये तो जाने राम

12

लेने देने का हुनर, कुछ तो तू भी सीख

फैलाने से हाथ क्या, मिली किसी को भीख़

13

क्या सुनना है शोर में, गाजा, बाजा, राग

ख़ामोशी में जो बजे, उसका खोज सुराग

14

होश कहाँ रहता किसे, जब होती तक़रार

कैसे कोई बच सके, तेग़ करे जब वा

15

दुल्हन आई सामने, पहने चंदन हार

दर्पण भी शर्मा गया, देख उसे इस बार


देवी नागरानी

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