16
हरित सकल उपवन हुआ, सुना नेह का राग
गुलशन ख़ुद मुरझा गया, जल नफ़रत की आग
17
मैं ख़ुद को पाने गई, अपने अंदर आज
बाहर भटकी उम्र भर, ‘देवी’ हुआ न काज
18
शुभ साधन है साधना, सृजन कर्म निष्पाप
दोहा लिखना छंद में, लगता मुझको जाप
19
सौदेबाज़ी जिंदगी, नेह-प्रेम व्यापार
रिश्ते-नाते दाँव पर, बिकता घर परिवार
20
रिश्ते बिखरे आपसी, गहरी पड़ी दरार
आज उठी है बीच में, नफ़रत की दीवार
21
साँसों में सरगम बजी, दिल में बजता साज़
बोले बिन सुन बैठकर, गूँज भरी आवाज़
22
सत्य न कोई पूजता, पूजे झूठ हज़ार
फ़न उनका कुचले बिना, मिले न सच का सार
23
चाहत ने छोड़ा किसे, कौन यहाँ आज़ाद
छूटा वो जो सुन सका, अंतर्मन का नाद
24
शर्मिंदा होना पड़ा, देखा जोड़ हिसाबपढ़ पाई ऐ ज़िंदगी, तेरी कहाँ किताब
25
ईंटों में अनबन हुई, ज़ख्मी थी दीवार
कब, कैसे, क्यों ये हुआ, करती सोच-विचार
26
आदत से मजबूर वो, खिज़ाँ न आए बाज़
सूनी-सूनी टहनियाँ, बता गई हर राज़
27
दोहे मन भावन लिखे, मन अब हुआ प्रसन्न
भूखे को जैसे मिला, बहुत दिनों में अन्न
28
सहरा-सहरा ज़िंदगी, ढूंढ रही है आब
ख़ुश्क हुआ हर दिल यहाँ, आँखें भी बे-आब
29
सहरा की यह प्यास है, चैन अमन ले छीन
पानी पानी कह थकी, प्यासी आज ज़मीन
30
दहशत दिल-दिल में बसी, लूटे चैन क़रार
दुर्घटना के शोर में, मौन करे व्यापार
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