विसर्जन
आए दिन इस करोना कॉल में अपने ही भीतर की खलाओं में दबी यादों के खजाने वक़्त वक़्त पर सतह पर आते जा रहे हैं.
याद आते हैं हर साल “गणपति बप्पा मोरिया” के स्थापन व् विसर्जन के अनेक मौके जब गाड़ियों में बैठकर लोगों के झुण्ड मुंबई के जुहू बीच पर चले जाते थे, और गणपति के विसर्जन के पश्चात हंसी-ख़ुशी मोदक का प्रसाद खाते हुए घर लौट आते थे. वे मौसम के नज़ारे यादों में कई बार, बार-बार खुद को दोहराते चले जाते हैं.
इस साल मुझे मेरे पुराने मित्र व् शुभचिंतकों ने इस पावन दिवस की शुभकामनाएं भेजी. भला हो व्हाट्सएप का जो तुरंत संदेश ले आती है और ले भी जाती है. वर्ना पुराने दिन याद आते हैं जब पिता की चिट्ठी हैदराबाद से मुंबई पंद्रह दिन बाद आ पाती, और पूरे महीने के बाद उन्हें वापसी उत्तर मिलता.
मेरे एक शागिर्द कार्तिक का संदेश आया –‘आंटी गणेश जी आपको लंबी एवं स्वस्थ उम्र दे. बहुत याद आती है आपकी, उन दिनों की जब मैं आपके पास पढ़ने और गणित सीखने आया करता था. अब मैं अपने दोनों बच्चों को वही बातें सुनाया करता हूँ. काश आप यहां मुंबई में होती तो वे भी आपके पास ही गणित सीखने आते.’
‘अरे गणित की बात मत करो कार्तिक. वह 1980 का दौर था और अब हम 2021 के संकटकाल में जी रहे है. मैं भी तो 40 साल बड़ी हुई हूँ और अब इस बढती उम्र के नए दौर के नज़ारों को देख रही हूँ, उनसे कुछ सीख रही हूँ. कहाँ गणित और कहाँ यह परिस्थिति. कोई तालमेल ही नहीं.’ मैंने जवाब में लिखा.
‘जब भी घर में गणपति स्थापन करता हूँ तो विसर्जन के दिन आपकी याद ज़रूर आती है. आप सप्रेम गणेश जी के भजन गाती, धुनी लगवाती’. अब की बार आप कब भारत आएँगी?’
‘अरे आऊंगी, जल्द ही आऊंगी. पर कब यह नहीं कह सकती. याद है जब बप्पा के दर्शन करने मैं तुम्हारे घर आई तब तुम्हारी मां ने मुझसे कहा था ‘परसों विसर्जन होगा आप जरूर आइयेगा टीचर.’ लिखते मेरा मन जाने क्यों खिल सा उठता है.
‘हां जरूर आने की कोशिश करूंगी.’ मेरा उत्तर था
और तुमने मासूमियत से मेरा हाथ पकड़ कर कहा था- ‘आपका विसर्जन कब होगा टीचर?’
‘मेरा विसर्जन क्यों होगा कार्तिक, मैं कोई गणपति हूँ?’ आज उस मासूमियत को टटोलती हूँ, तो बीते दिन आँखों के सामने चलचित्र की तरह घूम जाते हैं. अब देखो न, तुम खुद दो बच्चों के बाप हो गए हो और मुझे आत्मीयता से लिख भेजा. सच मानो बहुत अच्छा लगा. मैं अब भी यह नहीं बता सकती कि मेरा विसर्जन कब होगा? जो पिछले 40 सालों में नहीं हुआ वह आने वाले कल में, कब और कैसे होगा, यह तो गणपति बाबा ही जानते हैं. मैं तो सिर्फ अपने उन पुराने दिनों की यादों को पालने में झुला कर खुद को बहला लेती हूँ. चिरंजीव रहो.
शुभेच्छा के साथ
तुम्हारी टीचर आंटी
देवी नागरानी
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