Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ब्लॉग हुए बदहाल

 
दोहे "ब्लॉग हुए बदहाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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मुखपोथी पर आ गये, अब तो सारे मित्र।
हिन्दी ब्लॉगिंग की हुई, हालत बहुत विचित्र।१।
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लगा रहे हैं सब यहाँ, अपने मन के चित्र।
अच्छे-अच्छों का हुआ, दूषित यहाँ चरित्र।२।
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बेगाने भी कर रहे, अपनेपन से बात।
अपने-अपने ढंग से, बदल रहे हालात।३।
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ब्लॉगिंग में होता नहीं, फेसबुकी आनन्द।
बतियाने के पथ सभी, वहाँ दीखते बन्द।४।
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लिखते ही पाओ यहाँ, टिप्पणियाँ तत्काल।
टिप्पणियों को तरसते, ब्लॉग हुए बदहाल।५।
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ब्लॉक नहीं होता कभी, ब्लॉगिंग का संसार।
धैर्य और गम्भीरता, ब्लॉगिंग का आधार।६।
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ब्लॉगिंग देती वो मज़ा, जैसा दे सत्-संग।
यहाँ डोर मजबूत है, ऊँची उड़े पतंग।७।
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इन्द्रधनुष से हैं यहाँ, प्यारे-प्यारे रंग।
ब्लॉगिंग में चलते नहीं, नंगे और निहंग।८।
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लेख और रचनाओं को, गूगल रहा सहेज।
समझदार करते नहीं, ब्ल़गिंग से परहेज।९।
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भले चलाओ फेसबुक, ओ ब्लॉगिंग के सन्त।
मगर ब्लॉग के क्षेत्र का, कभी न होगा अन्त।१०।
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पहले लिक्खो ब्लॉग में, रचनाएँ-आलेख।
ब्लॉगिंग के पश्चात ही, मुखपोथी को देख।११।

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