Roop Shastri
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दोहे "चटके दर्पण की कभी, मिटती नहीं दरार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ढाई आखर प्रेम का, देता है सन्ताप।
हार-जीत के खेल में, बढ़ जाता है ताप।१।
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सच्चाई के साथ में, निर्धन करता प्यार।
मक्कारी से है भरा, धनवानों का प्यार।२।
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प्यार नहीं है वासना, ये तो है अनुबन्ध।
प्यार शब्द से है जुड़ा, तन-मन का सम्बन्ध।३।
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प्यार जगत में छेड़ता, मन वीणा के तार।
कुदरत ने हमको दिया, ये अमोल उपहार।४।
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सिर्फ दिखावे के लिए, ढोंगी करता प्यार।
चटके दर्पण की कभी, मिटती नहीं दरार।५।
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