Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गम का अम्बार लिए बैठा हूँ

 

गम का अम्बार लिए बैठा हूँ
लुटा दरबार लिए बैठा हूँ

नाव अब पार लगेगी कैसे
टूटी पतवार लिए बैठा हूँ

जा चुकी है कभी की सरदारी
फिर भी दस्तार लिए बैठा हूँ

बेईमानों के बीच में रहकर
पाक किरदार लिए बैठा हूँ

इश्क के खेल का खिलाड़ी हूँ
जीत में हार लिए बैठा हूँ

देख हालत बुरी ज़माने की
दिल में अंगार लिए बैठा हूँ

रुपहले “रूप” के इदारों में
मैं कल़मकार लिए बैठा हूँ
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http://uchcharan.blogspot.in/2016/06/blog-post_23.htm
 

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