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जीवन ललित-ललाम

 


Roop Shastri


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"दोहागीत-जीवन ललित-ललाम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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उपासना में वासना, मुख में है हरिनाम।
सत्संगों की आड़ में, होते गन्दे काम।।
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कामी. क्रोधी-लालची, करते कारोबार।
राम नाम की आड़ में, दौलत का व्यापार।।
उपवन के माली स्वयं, कली मसलते आज।
आशाएँ धूमिल हुईं, कुंठित हुआ समाज।।
गुरूकुलों के नाम को, कर डाला बदनाम।
सत्संगों की आड़ में, होते गन्दे काम।१।
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समय-समय की बात है, समय-समय के रंग।
जग में होते समय के, बहुत निराले ढंग।।
पल-पल में है बदलता, सरल कभी है वक्र।
रुकता-थकता है नहीं, कभी समय का चक्र।।
जीवन के इस खेल में, मत करना विश्राम।
सत्संगों की आड़ में, होते गन्दे काम।२।
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वृक्ष बचाते हैं धरा, देते सुखद समीर।
लहराते जब पेड़ हैं, घन बरसाते नीर।।
समय भोग का चल रहा, नहीं योग का काल।
मानवता का “रूप” तो, हुआ बहुत विकराल।।
माँ-बहनों की लाज का, लोग लगाते दाम।
सत्संगों की आड़ में, होते गन्दे काम।३।
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ओस चाटने से बुझे, नहीं किसी की प्यास।
जीव-जन्तुओं के लिए, जल जीवन की आस।।
पानी का संसार में, सीमित है भण्डार।
व्यर्थ न नीर बहाइए, जल जीवन आधार।।
पानी बिन होता नहीं, जीवन ललित-ललाम।
सत्संगों की आड़ में, होते गन्दे काम।४।


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