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Dr. Srimati Tara Singh
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कृष्ण सँवारो काज

 


दोहे "कृष्ण सँवारो काज" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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संकट में है द्रोपदी, खतरे में है लाज।
आया भादो मास है, कृष्ण सँवारो काज।।
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मनुज दनुज अब बन गया, भूल गया है शील।
देख अकेली नार को, बात करे अशलील।।
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भोली चिड़िया देखकर, झपट रहा है बाज।
हुआ बहुत लाचार अब, जंगल का अधिराज।।
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ईंधन पर अब हो गयी, मँहगाई की मार।
देखो डीजल कर गया, सत्तर रुपया पार।।
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जिनको मत अपना दिया, वो ही हैं अब मौन।
जनता के दुख-दर्द की, बात सुने तब कौन।।
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सूखे आँसू आँख के, सूने-सूने नैन।
अच्छे दिन के लिए सब, अब तक हैं बेचैन।।
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कल सूखे का कोप था, आज बाढ़ की मार।
है कुदरत के सामने, शासन भी लाचार


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