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ककड़ी मौसम का फल अनुपम

 


Roop Shastri


tScpodns12cohreod  · 


शनिवार, 17 अप्रैल 2021
बालगीत "ककड़ी मौसम का फल अनुपम" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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लम्बी-लम्बी हरी मुलायम।
ककड़ी मोह रही सबका मन।।
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कुछ होती हल्के रंगों की,
कुछ होती हैं बहुरंगी सी,
कुछ होती हैं सीधी सच्ची,
कुछ तिरछी हैं बेढंगी सी,
ककड़ी खाने से हो जाता,
शीतल-शीतल मन का उपवन।
ककड़ी मोह रही सबका मन।।
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नदी किनारे पालेजों में,
ककड़ी लदी हुईं बेलों पर,
ककड़ी बिकतीं हैं मेलों में,
हाट-गाँव में, फड़-ठेलों पर,
यह रोगों को दूर भगाती,
यह मौसम का फल है अनुपम।
ककड़ी मोह रही सबका मन।।
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आता जब अप्रैल महीना,
गर्म-गर्म जब लू चलती हैं,
तापमान दिन का बढ़ जाता,
गर्मी से धरती जलती है,
ऐसे मौसम में सबका ही,
ककड़ी खाने को करता मन।
ककड़ी मोह रही सबका मन।।
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