Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आज के हालात

 
आज के हालात

सच को सच कहने से डरता हूँ, रिश्ता कोई टूट न जाए,
सच का किस्सा सच सुनकर, अपना कोई रूठ न जाए।
अक्सर देखा हमने सबको, रिश्ते टिके स्वार्थ की नींव,
भरे हुए हैं झूठ के गागर, सच सुनकर कोई फूट न जाए।

कभी कभी तो सच झूठ में, हम खुद ही फँस जाते हैं,
सम्बन्धों के द्वार ठिठक, झूठ को ही सच कह जाते हैं।
मन को भ्रमित होते देखा, जब लगे दांव पर अपने हों,
अपनो के अपनेपन में तब, सच को हम बिसरा जाते हैं।

रिश्तों का रिश्ता रह जाये, हम ही थोड़ा झुक जाते हैं,
बिना किसी गलती के भी, हम ही थोड़ा नम जाते हैं।
जिनको हमने अपना समझा, गलती को अनदेखा रखा,
वो महत्व रिश्तों का समझें, हम ही अहम् भुला जाते हैं।

सम्बन्धों का महत्व समझकर, कुछ की ग़लती को बिसराया,
हमारी हमदर्दी को कुछ ने, अपनी ताकत अहसास कराया।
गुंडों और मवाली संग मिल, घर के बेटे निज घर को ही लूटें,
विनम्रता को कमजोरी समझा, अराजक हैं आभास कराया।

अ कीर्ति वर्द्धन

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ