अंसार काम्बरी जी
कर रहे मन्दिर मे नमाजी की कल्पना,
बस एक बार मस्जिद में हवन कराईये।
फुटपाथ पर बैठकर महलो की कल्पना,
दंगाईयों को कहो, इन्सान बन दिखाईये।
रोज ही तो लिखते हो, नयी गजल आप,
निर्दोष कटने वाले पशुओं का दर्द सुनाईये।
मन्दिर ने तो सदा ही यहाँ, सबको पनाह दी,
पत्थर चलाने वालो पर भी कलम चलाईये।
लगाते आग मुल्क मे, घुसपैठियो की खातिर,
घुसपैठिये बाहर निकलें, कोई गजल सुनाईये।
अ कीर्ति वर्द्धन
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