Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भूली बिसरी बात हुई

 

भूली बिसरी बात हुई

बहन बेटियों के सिर आँचल, भूली बिसरी बात हुई, 

पनघट से पानी भर लाना, अब भूली बिसरी बात हुई। 
शाम ढले आँगन में चूल्हा, वहीं बैठकर खाना खाना, 
गर्मी की रातों में छत पर, सब भूली बिसरी बात हुई। 
बरसात की झड़ी लगी जब, तवा कढ़ाई छत पर रखते, 
काग़ज़ की भी नाव चलाना, भूली बिसरी बात हुई। 
रात अमावस्या या पुर्णिमा, तारों की गति देखा करते, 
सप्तऋषि कभी ध्रुव तारा, यह भूली बिसरी बात हुई। 
दादी की खटिया पर क़ब्ज़ा, रोज़ नई कहानी सुनना, 
क़िस्सों में संस्कार सिखाना, भूली बिसरी बात हुई। 
शुरू कहाँ से ख़त्म कहाँ, क़िस्सों का कोई छोर न था, 
देख चाँद को समय बताना, भूली बिसरी बात हुई। 
उछल कूद पकड़म पकड़ाई, सारे खेल पुराने थे, 
चोट लगी तो फूँक मारना, भूली बिसरी बात हुई। 
नये दौर की पीढ़ी को तो, यह कुछ भी ज्ञात नहीं, 
संयुक्त परिवारों में जीवन, भूली बिसरी बात हुई। 

 डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
५३ महालक्ष्मी एनक्लेव
मुज़फ़्फ़रनगर उ प्र २५१००१
८२६५८२१८००

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